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________________ स्थितप्रज्ञ, सत्पुरुष है पहले फिर से सोचो, तुम जानते हो? क्योंकि ऐसा कभी होता नहीं कि जो जानता हो और बदल न जाए। बदलाहट जानने के पीछे अपने आप चली आती है। वह सहज परिणाम है, उसके लिए कुछ करना भी नहीं पड़ता। अगर बदलने के लिए जानने के अतिरिक्त भी कुछ करना पड़े तो समझना कि जानने में कोई कमी रह गई थी। जितनी कमी हो, उतना ही करना पड़ता है। वह जो कमी है, उसकी पूर्ति ही कृत्य से करनी पड़ती है। बोध की कमी कृत्य से पूरी करनी पड़ती है; अन्यथा बोध पर्याप्त है। बुद्ध का सारा संदेश यही है कि बोध पर्याप्त है। ठीक से देख लेना—जिसको बुद्ध सम्यक दृष्टि कहते हैं, जिसको महावीर ने सम्यक दर्शन कहा है-ठीक से देख लेना काफी है, काफी से ज्यादा है। ठीक से देख लेना इतनी बड़ी आग है कि तुम उस में ऐसे जल जाओगे, जैसे छोटा तिनका जल जाए। राख भी न बचेगी। तुम बचते चले जाते हो, क्योंकि आग असली नहीं है। आग-आग चिल्लाते जरूर हो, लगी कहीं नहीं है। आग शब्द ही है तुम्हारे लिए, शास्त्र ही है तुम्हारे लिए, सत्य नहीं। ___धर्म तुम्हारे लिए शास्त्र-ज्ञान है। जीवन की किताब से तुमने वे सूत्र नहीं सीखे हैं। और जो भी शास्त्र में भटका, वह भटका। पाप भी इतना नहीं भटकाता, जितना शास्त्र भटका देते हैं। क्योंकि पाप में हाथ तो जलता है कम से कम। पाप में चोट तो लगती है, घाव तो बनते हैं। शास्त्र तो बड़ा सुरक्षित है; न हाथ जलते हैं, न चोट लगती है, उलटे अहंकार को बड़े आभूषण मिल जाते हैं। बिना जाने जानने का मजा आ जाता है। सिर पर मुकुट बंध जाते हैं। बुद्ध ने कहा है, जो जान ले स्वयं से, वही ज्ञानी है; वही ब्राह्मण है। जो शास्त्र से जाने, वह ब्राह्मण-आभास; उससे बचना। और स्वयं कभी अपने जीवन में ऐसे उपद्रव मत करना कि जीवन को सीधे न जानकर शास्त्रों में खोजने निकल जाओ। जीवन में तो कोई डुबकी लगाता रहे तो आज नहीं कल किनारा पा जाएगा। शास्त्रों में जिन ने डुबकियां लगायीं, उनके सपनों का कोई भी अंत नहीं है। __ पृथ्वी पर इतने लोग धार्मिक दिखाई देते हैं, इतने लोग जानते हुए मालूम पड़ते हैं। क्या कमी है जानने की? अंबार लगे हैं। लोगों ने ढेर लगा लिए हैं जानने के। और उनकी तरफ नजर करो तो उनका जानना उनके ही काम न आया। जो जानना अपने आप काम न आ जाए, उसे जानना ही न जानना। अब हम इन सूत्रों में उतरने की कोशिश करें। बुद्ध ने इन्हें जीवन से सीखा था। शास्त्र से सीखना होता तो राजमहल में शास्त्र स्वयं आ जाते। पंडितों से सीखना होता, पंडित तो हाथ जोड़े, कतार बांधे सदा ही खड़े थे। बुद्ध जीवन में उतरे; महल की सीढ़ियों से नीचे आए। वहां गए, जहां कच्चा जीवन है। वहां गए, जहां जीवन असुरक्षित है। जहां जीवन अपनी पूरी आग में तपता
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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