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________________ एस धम्मो सनंतनो बहुत दिन तक यह बात चली। लेकिन एक वैज्ञानिक ने कोई तीन वर्ष मेहनत की उसके साथ और तब वह पकड़ पाया कि मामला क्या था। घोड़ा कुछ बुद्धिमान नहीं था, घोड़े को कुछ पता ही नहीं था संख्या का और गणित का। लेकिन सारथी और घोड़े के बीच एक अंतर्संवाद बन गया था। तो वह सारथी पास खड़ा रहता। घोड़ा सिर्फ इतना जानता था कि सारथी जब सिर झुकाता, तब वह टाप रोक देता; इससे ज्यादा कुछ जानता नहीं था। लेकिन उसने सारी दुनिया के बड़े-बड़े बुद्धिमानों को धोखा दे दिया। ___ अब वह सिर झुकाना भी इतना बारीक था कि इस वैज्ञानिक को भी तीन साल लग गए यह बात पकड़ने में कि यह आदमी जरा सा सिर झुकाता है और घोड़ा टाप रोक देता है। जब तक वह सिर नहीं झुकाता, वह टाप मारता रहता है। हिसाब सारथी करता है, इशारा सारथी करता है, घोड़ा सिर्फ इशारा पकड़ता है। उसने बड़े-बड़े गणित के सवाल हल किए। वह सदा ठीक-ठीक उत्तर देता। __ और यह वैज्ञानिक भी पकड़ न पाता, एक बार गलती हो गई; सारथी से गणित में गलती हो गई, इसलिए घोड़े से गलती हो गई। गलती के कारण सारथी थोड़ा अचकचा गया, क्योंकि घोड़ा झंझट में पड़ा जा रहा है। इससे थोड़ा खयाल उसको आया कि जरूर करता कुछ है सारथी, घोड़ा सिर्फ अनुगमन कर रहा है। जो कुशल सारथी है, वह घोड़े से प्रेम निर्मित करता है। घोड़े की भाषा जाननी जरूरी है, अगर घोड़े की मालकियत करनी हो। मार-पीटकर जो घोड़े के ऊपर सवार हो जाता है, वह कोई सारथी थोड़े ही है, वह तो हिंसा से सवार हो गया है। ' अब यह मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि दुनिया में दो तरह से लोग अपनी इंद्रियों पर सवार हो सकते हैं : एक वे, जो जबरदस्ती कोड़े मारकर, निरीह इंद्रियों को सताकर, निर्दोष इंद्रियों के साथ हिंसा का व्यवहार करके, भूखा मारकर, रतजगा करवाकर, उपवास-अनशन से, हजार तरह के कष्ट, धूप में खड़े होकर, कांटों पर लेटकर, इंद्रियों के साथ हिंसा करने के द्वारा इंद्रियों को वश में करते हुए मालूम पड़ते हैं। इंद्रियां वश में होती नहीं, केवल जड़ हो जाती हैं, मृतवत हो जाती हैं। इसलिए तुम अपने त्यागियों में जीवन की उत्फुल्लता न देखोगे, जो होनी चाहिए। जो कि भोगी में दिखाई पड़ती है, उतनी उत्फुल्लता भी तुम्हारे त्यागी में दिखाई नहीं पड़ती। तुम्हारे भोगी में भी कभी-कभी नृत्य की भनक आती है, वह भी तुम्हारे त्यागी में नहीं आती। त्यागी तो नाचता हुआ होना था। जिसे जीवन का परम आनंद मिला हो, जिसे जीवन का सत्य मिला हो, उसकी तो गंध बदल जानी थी; उसके पास तो फूल ही फूल खिल जाने थे। जिसके जीवन में परमात्मा झांका हो, उसके जीवन में तुम कैसी उदासी देखते हो? कैसी मुर्दगी देखते हो? जैसे कब्रिस्तान चारों तरफ हो उसके। जैसे लाशों से घिरा बैठा हो—बैठा है घिरा, अपनी ही लाश से; बैठा है मरा, अपनी 174
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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