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एस धम्मो सनंतनो
दूसरा सूत्र याद रखो कि जैसे-जैसे चीजें पास आती हैं, वैसे ही पता चलता है, कौन सत्य है, कौन झूठ है ! पास आने पर ही सचाई और झूठ का निर्णय होता है । जो झूठ है, वह पास आते-आते खोने लगता है, बिखरने लगता है। जो सच है, वह पास आते-आते बढ़ने लगता है।
इमर्सन ने कहा है कि महापुरुष वही है, जिसके पास आने पर वह और भी बड़ा होता चला जाए। दूर से तो हजारों महापुरुष मालूम होते हैं; पास आने की बात है। पास आने पर जो छोटा होने लगे, समझना कि महापुरुष होना मृग मरीचिका थी । पास आने पर जो और बड़ा होने लगे, तुम जैसे-जैसे पास आओ, उसका शिखर इतना ऊंचा उठने लगे कि तुम्हारी आंखें भी वहां तक न पहुंच पाएं; जब तुम उसके बिलकुल निकट आकर खड़े हो जाओ तो वह तुम्हारी दृष्टि से बहुत दूर, अनंत आकाश में उठ जाए, तो ही जानना कि महापुरुष है।
पास आने पर ही सत्य का पता चलता है।
इंद्रियों में कुछ खराबी नहीं है; इंद्रियां सपने देखने के ढंग हैं। सारा मन ही स्वप्न देखने का यंत्र है; स्वप्न देखने की बड़ी कुशल व्यवस्था है। और इसे ऐसा नहीं है कि तुम नहीं जानते हो; तुम जानते हो, लेकिन जानना नहीं चाहते हो। तुम डरते हो कि कहीं यह बात गहरी होकर भीतर बैठ न जाए।
ऐ नासेहो ! बेफायदा समझाते हो मुझको
मैं खूब समझता हूं मगर दिल से हूं नाचार
कोई समझाए भी तो तुम यही कहते हो : समझता तो मैं हूं, व्यर्थ मेहनत मत करो मुझे समझाने की, मगर मैं मजबूर हूं, दिल से मजबूर हूं।
यह बात झूठ है। जो समझता है, वह बाहर हो जाता है।
मेरे पास लोग आते हैं; वे कहते हैं, हम जानते हैं, क्रोध व्यर्थ है, फिर भी हो जाता है। मैं उनसे कहता हूं, तब तुम जानो कि अभी तुमने जाना नहीं। क्योंकि ऐसा कभी होता ही नहीं । जो जान लिया जाए, वह जीवन बन जाता है। जो जानकर भी जीवन न बने, वह जाना ही नहीं गया। तुम वहां भी अपने को धोखा दे रहे हो । मन तुम्हें वहां भी भरमाया, भटकाया।
मैं खूब समझता हूं मगर दिल से हूं नाचार ऐ नासेहो ! बेफायदा समझाते हो मुझको
तुम यह भी समझ लेते हो कि तुम समझते हो; यह समझने से बचने की तरकीब हुई। तुम यह भी मान लेते हो कि जान लिया; यह जानने के बीच तुमने दीवाल खड़ी कर ली। यह सच है कि बहुत मौके आए थे जानने के, यह बात सच है; लेकिन उन मौकों को तुम चूक गए हो। उन मौकों के कारण ही तुमको यह भ्रम होता है कि तुमने जान लिया, माना ।
कितनी बार तुमने क्रोध किया, कितनी बार कामवासना से भरे, कितनी बार
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