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एस धम्मो सनंतनो
महावीर ने कहा है : एक को पाने से सब पा लिया जाता है। एक को जानने से सब जान लिया जाता है।
लेकिन इस एक से हम बचते रहते हैं। कारण है; कारण बड़ा उलझा हुआ है। कारण बड़ा दुरूह है, बेबूझ है, पहेली जैसा है। कारण यह है कि यह एक हमें मिला ही हुआ है, इसलिए हम इसे पाने की कोशिश नहीं करते। पाने की कोशिश तो स्वभावतः उसी के लिए होती है, जो हमें मिला हुआ नहीं है। आंख उसी को देखती है, जो हमारे पास नहीं है। दूर पर नजर जाती है, पास से चूक जाती है। ___ और तुम अपने इतने पास हो कि तुम्हारे और तुम्हारे बीच में कोई फासला ही नहीं है। तुम तुम हो; मिले ही हुए हो, इसीलिए चूकते जा रहे हो। यह जो दुर्घटना घटी है कि मछली पूछती है, सागर कहां है; यह जो दुर्घटना घटी है कि आदमी अपनी खबर ही भूल जाता है, विस्मरण ही हो जाता है कि मैं भी हूं; वह इसीलिए घटी है कि तुम पहली तो बात, मिले ही हुए हो।
दूसरी बात ः तुम मौजूद हो। तुम्हारा स्वभाव ही तुम हो। यह इतने निकट है, यह इतने करीब है कि देखने के लिए जगह चाहिए, फासला चाहिए। अगर आंख बहुत करीब आ जाए किसी चीज के तो देख नहीं पाती; थोड़ी दूरी चाहिए। ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक गवाही के लिए अदालत में गया था। किसी ने गोली चलाकर किसी को मार दिया था। उससे न्यायाधीश ने पूछा कि तुम कितनी दूर थे? उसने कहा, यही कोई दो मील के करीब। न्यायाधीश ने कहा, दो मील! तुम्हें कितनी दर से दिखाई पड़ता है? उसने कहा, ठीक-ठीक नहीं कह सकता, चांद-तारे मुझे दिखाई पड़ते हैं। हिसाब आप कर लो। चांद-तारे दिखाई पड़ते हैं! ___ असल में दिखाई पड़ने के लिए दूरी चाहिए। जैसे-जैसे चीजें निकट आने लगती हैं, धुंधली होने लगती हैं। राह पर गुजरती स्त्री दिखाई पड़ती है, अपनी पत्नी दिखाई नहीं पड़ती। जो दूसरे के पास है, दिखाई पड़ता है, जो अपने पास है, नहीं दिखाई पड़ता। जिस मकान में तुम रहते हो, वह दिखाई नहीं पड़ता, पड़ोसी जिसमें रहता है, वह दिखाई पड़ता है-दूरी चाहिए। __ अब यह बड़ा मुश्किल है; तुम से तुम्हारी दूरी कैसे हो? कोई उपाय नहीं कि तुमसे तुम्हारी दूरी हो जाए। इसलिए धीरे-धीरे हम उसको विस्मरण ही कर देते हैं, जो हम हैं। खोया नहीं है हमने स्वयं को, विस्मरण किया है। _इसलिए धर्म पाने की कला नहीं है, सिर्फ स्मरण की कला है, याद की कला है। खोया कभी भी नहीं है; विस्मरण हुआ है। सुध भूल गई है, सुरति खो गई है। तुम नहीं खो गए हो, सिर्फ याद खो गई है।
जो मिला ही है, इसे पाने के लिए क्या करना पड़ेगा?
जो मिला ही है, इसे पाने के लिए वस्तुतः कुछ करना नहीं है; जो नहीं मिला है, उसे पाने की दौड़ अगर थोड़ी देर को रुक जाए, बस काफी है। विधायक रूप से इसे
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