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________________ अंतश्चक्षु खोल शराब पीने की ही क्यों न हो, तुम मालिक, अच्छा। तुम निर्णायक हो। अगर तुम यही निर्णय करते हो कि जहर पीना है, जहर पीओ। तुम्हारी स्वतंत्रता है। लेकिन बस, इतना खयाल रखना कि बेईमानी न हो, यह तुम्हारी स्वतंत्रता हो। ऐसा न हो कि तुम हो तो मजबूर, और कहो कि नहीं, स्वतंत्रता से पीते हैं। और हो मजबूर, बिना पीए नहीं रहा जाता। धोखा मत देना, क्योंकि धोखा तुम अपने को देते हो, किसी और को नहीं। और मैं तुमसे यह भी कहता हूं, अगर प्रार्थना और इबादत की आदत भी तुम्हारी मजबूरी बन गई हो तो बुरी। नाम बदलने से कुछ भी नहीं होता। पर नाम बदलने का काम चलता है। भारतीय पार्लियामेंट में, हिमालय में पाई जाने वाली नील गाय को मारने का सवाल था। वह गाय जैसी होती है और खेतों को नुकसान कर रही थी और संख्या उसकी बहुत बढ़ गई थी-उन्नीस सौ बावन के करीब। तो अब गाय को कैसे मारना? नील गाय-उसका नाम गाय जैसा है; वह गाय है नहीं, गाय जैसी है। झंझट खड़ी हो जाएगी, मूढ़ों का उपद्रव मच जाएगा। साधु-संन्यासी दिल्ली पर हमला कर देंगे कि गाय को मार रहे हो? यह तो महापाप हुआ जा रहा है। हजार ब्राह्मणों को मारने के बराबर पाप लगता है एक गाय को मारनो। यह तो तूफान आ जाएगा। तो राजनीतिज्ञों ने होशियारी की। पहले उन्होंने उसका नाम बदल दिया-नील घोड़ा। बात खतम! अब मजे से मारो। कोई न उठा—न कोई शंकराचार्य, न कोई साधु-संन्यासी-कोई दिल्ली की तरफ न गया। बात ही खतम हो गई। नील घोड़ा है, इसको मारने में क्या हर्ज है? लेकिन मर वही गाय रही है। __ बादे-सरसर को अगर तुमने कहा मौजे-नसीम अगर आंधी-अंधड़ को तुमने सुबह की ताजी हवा कहा, धूल-धवांस से भरे हुए, गुबार से भरे हुए अंधड़ को बादे-सरसर को अगर तुमने कहा मौजे-नसीम इससे मौसम में कोई फर्क नहीं आएगा क्या फर्क पड़ेगा? तुम आंधी को, अंधड़ को, धूल-धवांस से भरे हुए उपद्रव को मलय-समीर कहो, मलयानिल से आती सुबह की ताजी हवा कहो। ___ इससे मौसम में कोई फर्क नहीं आएगा नामों में बहुत मत उलझो। नाम बड़ा धोखा देते हैं। नामों के कारण हमने कई तरह की तरकीबें लगा ली हैं। अच्छी आदत—कोई उसके खिलाफ नहीं; मैं हूं उसके खिलाफ। बुरी आदत-सब उसके खिलाफ हैं; मैं उसके खिलाफ नहीं हूं। बुरी और अच्छी की मेरी परिभाषा सिर्फ इतनी है और सीधी साफ है; आदतों से इसका कोई संबंध नहीं है, मालकियत से संबंध है। जो आदत तुम्हारी मालिक हो 163
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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