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एस धम्मो सनंतनो
तब तक अंतर्यात्रा शुरू न होगी। तुम मंदिर में फूल चढ़ा आओगे, वह भी तरकीब होगी संसार में सफल हो जाने की। भगवान को भी राजी कर लो, कौन जाने कोई बीच में अड़ंगा डाल दे !
गणेश का नाम इसीलिए शुरू में लिखा जाता है । कहते हैं, गणेश उपद्रवी थे। जो प्रारंभिक कथा है, वह बड़ी मजेदार है। गणेश उपद्रवी थे और दूसरों के कार्यों में विघ्न-बाधा डालते थे। इसलिए उनका नाम लोग शुरू में ही लेने लगे कि उनको पहले ही राजी कर लो। फिर तो धीरे-धीरे लोग भूल ही गए कि असली बात क्या थी ! असली बात सिर्फ यही थी कि उनके उपद्रव के डर से लोग कुछ भी काम करते — शादी-विवाह करते, दुकान खोलते, मकान बनाते – उनका नाम पहले ले
ते कि तुम राजी रहना । हम तुम्हारे ही हैं, हमारी तरफ खयाल रखना । धीरे-धीरे बात बदल गई। अब तो गणेश जो हैं, वे मंगल के देवता हो गए हैं। धीरे-धीरे लोग भूल ही गए कि उनकी याद करते थे, उनके विघ्न- उपद्रव की प्रवृत्ति के कारण । शब्द ने एक करवट ले ली, नया अर्थ ले लिया।
लोग मंदिर में फूल चढ़ा आते हैं, मजार पर हो आते हैं फकीर की, ताबीज बांध ते हैं धर्म का, लेकिन संसार के लिए।
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पूछा है, 'आप कहते हैं, कामना बहिर्गामी है ।'
समस्त कामनाएं बहिर्गामी हैं; कामना मात्र बहिर्गामी है। भीतर ले जाने वाली कोई भी कामना नहीं है। कामना ले ही जाती बाहर है।
तो स्वभावतः प्रश्न उठता है, फिर हम भीतर कैसे जाएं? क्योंकि जब कोई कामना ही भीतर जाने की न होगी तो हम भीतर जाने का प्रयास क्यों करेंगे !
बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है, 'फिर क्या है जो अंतर्यात्रा पर ले जाता है ?'
वासना की असफलता, कामना की विफलता, संसार की पराजय । भीतर जाने की कोई वासना नहीं है, जब सभी वासनाएं हार जाती हैं, तुम अचानक भीतर सरकने लगते हो। जब सभी वासनाएं हार जाती हैं, तुम बाहर नहीं जाते; बाहर जाना व्यर्थ हो गया। और तब अचानक तुम भीतर खींचे जाते हो ।
इस फर्क को समझ लेना : भीतर कोई नहीं जाता। तुम बाहर जाते हो, बाहर जा सकते हो, भीतर खींचे जाते हो; इसलिए भीतर पहुंचना प्रसादरूप है। बाहर भर मत जाओ, भीतर खींच लिए जाओगे। तुम बाहर पकड़े हो जोर से किनारों को, इसलिए भीतर की धार तुम्हें खींच नहीं पाती। तुमने नाव को किनारे की खूंटियों से बांध दिया है, अन्यथा नदी समर्थ है इसको ले जाने में बड़ी दूर की यात्रा पर ।
वासना नहीं है भीतर जाने की कोई । मोक्ष की कामना कोई भी नहीं होती। जब कोई कामना नहीं होती, तब उस दशा का नाम मोक्ष है।
मेरी शिकस्त मेरी फतह का रसूल बनी मेरी शिकस्त ही तो इराक का उसूल बनी
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