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अंतश्चक्षु खोल
सही! आओ जिक्रे - यार करें। उस प्यारे की याद करें।
पर लोग बड़े पागल हैं। अगर मैं महावीर के वचनों पर बोलता हूं, जैन सुनने आ जाते हैं। जिक्रे-यार से कुछ लेना-देना नहीं। अगर बुद्ध वचनों पर बोलता हूं, वे नदारद हो जाते हैं। अगर क्राइस्ट पर बोलता हूं, क्रिश्चियन उत्सुक हो जाता है। नानक पर बोला, कुछ सरदार दिखाई पड़ने लगे थे; फिर नहीं दिखाई पड़ते - बस, एक हमारे सरदार गुरुदयाल को छोड़कर !
नहीं, जिक्रे - यार से कुछ मतलब नहीं है । अन्यथा ये तो बहाने हैं। उसी की याद कर रहे हैं बहुत-बहुत बहानों से । पता नहीं, कौन सा बहाना ठीक पड़ जाए। किस मौके पर घटना घट जाए, बीज उतर जाए।
चौथा प्रश्न ः
आप कहते हैं कि कामना बहिर्गामी है, फिर क्या है जो अंतर्यात्रा पर ले जाता है ?
सा
र में हार जाना; वासना में हार जाना; तृष्णा की असफलता परमात्मा में ले जाती है, अंतर्गमन में ले जाती है। जीवन जैसा तुम जी रहे हो, व्यर्थ है, इसकी प्रगाढ़ चोट जगा जाती है । फिर बाहर के जीवन में उत्सुकता नहीं रह जाती।
इसे थोड़ा समझो। क्योंकि मैं देखता हूं, बहुत से लोग अंतर्जीवन में उत्सुक होते हैं, लेकिन चोट नहीं पड़ी है। बाहर का जीवन असफल नहीं हुआ है। और भीतर के जीवन में उत्सुक हो रहे हैं। तो उनका भीतर का जीवन भी बाहर के जीवन का ही एक हिस्सा होता है; भीतर का जीवन नहीं होता। उनका मंदिर भी दुकान का ही एक कोना होता है। उनकी प्रार्थना भी उनके बही-खातों का प्रारंभ होती है- -श्री गणेशाय नमः । बही-खाते का प्रारंभ भगवान से। ठीक से चले दुकान तो परमात्मा का स्मरण कर लेते हैं । परमात्मा का स्मरण करके नर्क की व्यवस्था करते हैं।
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जहां तक मुझे पता है, इन दुकानदारों ने नर्क के दरवाजे पर भी लिख दिया होगा - श्री गणेशाय नमः । उनकी यात्रा... तुमने चोरों को देखा ? चोर भी जाते हैं चोरी को तो भगवान का नाम लेकर जाते हैं। मेरे पास आ जाते हैं ऐसे कुछ लोग । वे कहते हैं, आशीर्वाद दे दें, इच्छा पूरी हो जाए ।
तुम इच्छा तो बताओ!
अब आप तो सब जानते ही हैं।
किसी को मुकदमा जीतना है... तुम्हारी इच्छाएं व्यर्थ नहीं हो गई हैं जब तक,
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