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एस धम्मो सनंतनो
उन्हें नष्ट कर देंगे। तुम्हारे तर्क से मेरे विचार न टकरा जाएं, अन्यथा तुम्हारा तर्क उन्हें खंड-खंड कर देगा। ___ तुम जरा मुझे जगह दो। तुम जरा हटकर खड़े हो जाओ। तुम जरा तुमसे ही हटकर खड़े हो जाओ, ताकि मैं सीधा-सीधा, चुपचाप तुम्हारे भीतर आ जाऊं। ___माना ये शब्द बड़े छोटे हैं जैसे छोटे-छोटे बीज। और अगर तमने इनको भूमि दे दी, थोड़ी नम, आंसुओं से गीली जगह दे दी, तो मुझे पक्का पता है, तुम एक बड़ी उपजाऊ जमीन अपने भीतर लिए चल रहे हो। बड़ी संभावनाएं हैं। परमात्मा तुम्हारी संभावना है, अब और बड़ी संभावना क्या होगी?
ठीक है, अभिव्यक्ति की तो मर्यादा है-होगी ही। शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा, धारणाओं का उपयोग करना पड़ेगा, भाषा का उपयोग करना पड़ेगा। ये सब मर्यादाएं लग जाएंगी। अब समझदारी इसमें है सुनने वाले की, कि मर्यादाओं पर ध्यान न दे; वह जो अमर्याद मर्यादा के भीतर से बहने की चेष्टा कर रहा है, उस पर ध्यान दे।
नदी को देखना, किनारों को मत देखना। किनारों में तो सीमाएं हैं; नदी असीम की तरफ बही जा रही है। नदी हमेशा सागर की तरफ उन्मुख है; किनारों में बंधी कहां है? किनारों के बीच है माना, किनारों में बंधी कहां है?
जो मैं कह रहा हं-शब्द किनारे हैं। उनके सहारे के बिना नदी सागर तक भी न पहुंच पाएगी, उनका सहारा चाहिए। तुम तक न पहुंचा सकूँगा अन्यथा। इसलिए बोले चला जाता है। आज चूकोगे, कल चूकोगे, परसों चूकोगे, कभी तो ऐसी घड़ी आएगी, कभी तो ऐसा होगा कि तुम बीच में न खड़े होओगे और मैं पहुंच जाऊंगा। एक भी बीज पहुंच जाए, बस पर्याप्त है। एक बार तुम्हारे भीतर अंकुरण होने लगे। बीज तुम्हारे भीतर टूटे, सब हो जाएगा।
इक सफीना है तेरी यादगार
इक समंदर है मेरी तनहाई जब तक तुम्हारे भीतर परमात्मा की याद नहीं उठी है, तब तक तुम एक सागर हो- रिक्तता के, एकाकीपन के, अकेले।
इक सफीना है तेरी यादगार
इक समंदर है मेरी तनहाई और जैसे ही तुम्हारे भीतर परमात्मा की याद जगनी शुरू होगी–एक बीज भी टूटा, स्मरण आया-नाव बनी। उसकी याद है नाव। उसकी याद फिर पार ले जाती है। __सत्संग का कुल इतना ही अर्थ है : आओ जिक्रे-यार करें। उसकी याद करें, बहाने खोजें, उसकी बात करें। कुछ निमित्त बनाएं, उसकी स्मृति को जगाएं।
धम्मपद एक बहाना है, गीता एक बहाना है, कुरान एक बहाना है, किसी बहाने
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