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________________ एस धम्मो सनंतनो है। तो जो मैं तुमसे कह रहा है, वह शब्दों के बीच में है। जो मैं तुमसे कह रहा हं, वह लकीरों के अंतराल में है। तुमसे जो मैं कह रहा हूं, उसमें नहीं है, जो मैं कहना चाहता हूं-आसपास है, शब्दों के आसपास है। शब्द को सीधा मत पकड़ लेना, वहीं भूल हो जाएगी। शब्द को झपटकर मत पकड़ लेना; अन्यथा कब्र बन जाएगी। शब्द को आहिस्ते से, बड़े आहिस्ते से, बड़े परोक्ष ढंग से सुनना। शब्द की धुन को पकड़ना, शब्द के गीत को पकड़ना, शब्द के भीतर पड़े संगीत को पकड़ना, शब्द तो खोल की तरह छोड़ देना। शब्द के भीतर शून्य को डालकर भेजा है। शब्द तो कैप्सूल है, औषधि भीतर है। तुम पर सब निर्भर करेगा। ऐसा मत करना कि कैप्सूल की खोल तो चबा जाओ; और भीतर जो है, उसे फेंक दो। ऐसा ही होता रहा है। ___ इक हर्फ इक तवील हिकायत से कम नहीं एक छोटे से अक्षर में सब कुछ समाया हो सकता है, एक लंबी बात कही गई हो सकती है। इक हर्फ इक तवील हिकायत से कम नहीं इक बूंद इक बहर की वुसअत से कम नहीं एक छोटी सी बूंद में पूरा सागर छिपा है, सागर की पूरी विशालता छिपी है। अगर तुमने बूंद को जान लिया तो सागर को जान लोगे। बूंद को जानने के बाद सागर में जानने को बचता क्या है? जो बूंद में बड़े छोटे रूप में है, वही सागर में बड़े रूप में है। निकले खुलूस दिल से अगर वक्ते-नीमशब इक आह इक सदी की इबादत से कम नहीं एक आह इक सदी की इबादत से कम नहीं ठीक, सम्यक ढंग से , एकांत में, मौन में, आधी अंधेरी रात में निकले खुलूस दिल से अगर वक्ते-नीमशब जब सारा जगत सोया हो, किसी को पता भी न चले। क्योंकि आदमी बड़ी प्रदर्शनवादी है। प्रार्थना भी करता है, दूसरों को दिखाने के लिए करता है। मंदिर में देखो, लोग प्रार्थना करते हैं, जैसे भीड़ बढ़ती है, प्रार्थना का शोर बढ़ने लगता है। कोई नहीं रह जाता, सन्नाटा हो जाता है। लोग देख लेते हैं, अब कोई नहीं, सार क्या? प्रार्थना परमात्मा से नहीं हो रही, भीड़ सुन ले। लोगों को पता चल जाए कि प्रार्थना करने वाला कितना धार्मिक है! आधी रात में। सूफी फकीर कहते रहे हैं, जब किसी को पता न चले। चुपचाप, एक आह भी __ इक आह इक सदी की इबादत से कम नहीं 154
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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