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एस धम्मो सनंतनो
दिन जिंदगी एक दुख-स्वप्न की भांति टूट जाती है-जैसे अचानक वीणा के तार टूट गए; एक झनझनाहट रह जाती है, संगीत खो जाता है। धीरे-धीरे झनझनाहट भी खो जाती है। तुम बिलकुल शून्य में थिर रह जाते हो। शून्य धबड़ाता है। कुछ करने का मन होता है-कुछ भी कर लो।
हाय ख्वाबों की खियाबां साजियां
आंख क्या खोली, चमन मुरझा गए तुमने अब तक जो भी बगीचे देखे, फूल देखे, सब सपनों के थे। और तुमने जो क्यारियां लगाने की कल्पनाएं और योजनाएं बनाई थीं, वे सब स्वप्न में थीं।
हाय ख्वाबों की खियाबां साजियां वे जो क्यारियां लगाने की तुमने बड़ी योजनाएं बना रखी थीं, महल बनाए थे, बगीचे लगाए थे,ले सब स्वप्न में थे।
___ आंख क्या खोली, चमन मुरझा गए
आंख खुलते ही पता चलता है कि चमन खोने लगे; बगीचे कहीं दूर अंधेरे में डूबने लगे, कहीं दूर हटे जाते हैं।
किस तजल्ली का दिया हमको फरेब और ऐसा लगता था कि हम जो कर रहे हैं, उससे प्रकाश के करीब आ रहे हैं।
किस तजल्ली का दिया हमको फरेब
किस धुंधलके हमको पहुंचा गए सपनों ने कैसा धोखा दिया! आशा बंधाई प्रकाशों की और अंधेरों में पहुंचा गए।
किस तजल्ली का दिया हमको फरेब
किस धुंधलके हमको पहुंचा गए घबड़ाहट पकड़ेगी, हाथ-पैर कंप जाएंगे, प्राण कंप जाएंगे।
पश्चिम में, डेनमार्क में एक बहुत प्रसिद्ध विचारक हुआः सोरेन कीर्कगार्ड। उसने कहा है, इसी घड़ी में मनुष्य-जीवन की सबसे बड़ी चिंता पैदा होती है।
और चिंताएं तो सब साधारण हैं। पत्नी बीमार है, चिंता होती है। बच्चा बीमार है, चिंता होती है। दुकान डूबी जाती है, दिवाला निकलता है, चिंता होती है। खुद का बुढ़ापा आता है, चिंता होती है। ___ माना, चिंताएं हैं हजार, लेकिन सोरेन कीर्कगार्ड ने कहा है, वे चिंताएं हैं, चिंता नहीं; असली चिंता तो तब पकड़ती है, जब तुम्हें अचानक लगता है कि पैर के नीचे से जमीन खिसक गई।
हाय ख्वाबों की खियाबां साजियां . .
आंख क्या खोली, चमन मुरझा गए किस तजल्ली का दिया हमको फरेब किस धुंधलके हमको पहुंचा गए
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