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अंतश्चक्षु खोल
के करीब है— फूट रही है। अंधेरा सुबह का गर्भ है। अंधेरी रात सुबह की मां है।
__ शब के पहलू में कहीं फूट रही है पौ भी घबड़ाओ मत; यह जो अंधेरा तुम्हें घेर लेगा व्यर्थता के बोध में, इसी के भीतर छिपी कहीं सुबह तैयार हो रही है। ताजी सुबह आने के करीब है। - कभी दुनिया में अंधेरे न जहांगीर हुए।
अंधेरा आता है, जाता है; घबड़ाना मत। और बड़ा अंधेरा घेर लेता है, जब जीवन की व्यर्थता मालूम होती है। इस घड़ी में सदगुरु की जरूरत है, जो तुम्हें कहे, घबड़ाओ मत; सुबह करीब है। जो तुम्हें कहे
कभी दुनिया में अंधेरे न जहांगीर हुए क्योंकि बहुत लोग इस घड़ी में और भी पागलपन से दौड़ने लगते हैं, सोचकर कि शायद दौड़ने में कमी रह गई है। सोचकर कि शायद तर्क करने में कमी रह गई है, और तर्क करने लगते हैं; सोचकर कि यह कैसे हो सकता है कि मैं और सदा से व्यर्थ? और भी अपनी सुरक्षा में लग जाते हैं। और भी अपने चारों तरफ तर्क-जाल खड़ा कर लेते हैं। और कहते हैं, नहीं, यही ठीक है।
बहुत लोगों को मैं जानता हूं, जो मेरे पास आने से डरते हैं। क्योंकि उन्हें भी दिखाई तो पड़ता है, कहीं से खबर तो आती लगती है कि जैसा चल रहे हैं, वह व्यर्थ है। लेकिन मानने की हिम्मत नहीं; कमजोर हैं, कायर हैं। और कायर मानता नहीं कि कायर है। तो वह दूर रहने के कारण जुटाता है। वह कहता है, वहां कुछ भी नहीं है, जाने से सार क्या? ऐसा करके अपने का भुलावा देता है, ताकि इस मान्यता में जी सके कि मैंने जो किया है, व्यर्थ ही नहीं है, सार्थक है।
अहंकार विपरीत है व्यर्थता के बोध के, क्योंकि व्यर्थता अगर जीवन में है तो अहंकार गया, गिरा। अहंकार के लिए सहारा चाहिए कि हम जो कर रहे हैं, बड़ा सार्थक है। अहंकार को न केवल यह सहारा चाहिए कि हम जो कर रहे हैं, सार्थक है; यह भी सहारा चाहिए कि वह परम अर्थों में सार्थक है; आत्यंतिक अर्थों में सार्थक है।
एक आदमी धन कमाता है, इकट्ठा करता है धन, कभी न कभी उसे दिखाई पड़ता है कि यह तो सब व्यर्थ हो गया। ये ठीकरे मैंने इकट्ठे कर लिए, इनका कोई मूल्य नहीं है। तो घबड़ाकर दान करने लगता है, पुण्य करने लगता है। जिन ठीकरों से यहां कुछ न मिला, अब सोचता है, परलोक में कुछ मिल जाए: मगर ठीकरे वही हैं। अब तुम थोड़ा सोचो। जो यहीं व्यर्थ सिद्ध हुए, वे वहां कैसे सार्थक हो जाएंगे? जो यहां तक सार्थक सिद्ध न हुए, वे परलोक में कैसे सार्थक हो जाएंगे? संसार में भी जिनके द्वारा धोखा हुआ, अब तुम परमात्मा में भी उन्हीं के द्वारा धोखा खाना चाहते हो?
ध्यान रखना, घबड़ा मत जाना। जिस दिन समझ में आता है, सब व्यर्थ है, उस
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