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अंतश्चक्षु खोल
संदेह का, उसे देखो। इसे निकालने के लिए जहां भी तुम्हारी श्रद्धा को आश्रय-स्थल मिल जाए, शरण मिल जाए, उसका उपयोग कर लो।
दूसरा प्रश्नः
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आपके कल के प्रवचन ने मुझे बहुत गहराई तक छू लिया। यह वचनः कि मछलियां भी आटे में छिपे कांटे को समझ गई हैं, पर मनुष्य नहीं समझा, मुझे झकझोर गया। उसने सोचने को मजबूर किया कि मैं एक व्यर्थ जीवन जी रहा हूं और कोल्हू के बैल की भांति चक्कर लगा रहा है। इस एहसास के लिए मेरे प्रणाम लें और आशीष दें कि मैं होशपूर्वक जी सकू।
| एक एक बूंद जुड़कर सागर बन जाता है। एक-एक ज्योति जुड़कर महासर्यों का
जन्म होता है। ऐसी ही छोटी-छोटी समझ, छोटी-छोटी अंतर्दृष्टि को इकट्ठी करते जाओ, राशिभूत इकट्ठी करते जाओ। यही तुम्हारे भीतर परम प्रकाश की शुरुआत है।
कोई महान विस्फोट के लिए प्रतीक्षा मत करो, छोटी-छोटी चिनगारियों को इकट्ठा कर लो। जिंदगी छोटी-छोटी बातों से बनी है। जिंदगी बहुत बड़ी बातों का नाम नहीं है। बड़ी बातों की आकांक्षा भी अहंकार की आकांक्षा है। लोग प्रतीक्षा करते हैं, कुछ बड़ा घटे; वहीं चूक जाते हैं।
शुभ हुआ।
अगर होश से मुझे सुनोगे तो धीरे-धीरे ऐसी अंतर्दष्टि रोज-रोज इकट्ठी होने लगेगी, सघन होने लगेगी। ऐसे ही कोई समाधि की तरफ गतिमान होता है। . यह जो मैं तुमसे कह रहा हूं, यह तुम्हारे मनोरंजन के लिए नहीं है। यह जो मैं तुमसे कह रहा हं, तुम्हारे बुद्धि के संग्रह के लिए नहीं है। यह जो मैं तुमसे कह रहा हूं, तुम बड़े ज्ञानी हो जाओ, पंडित हो जाओ, इसके लिए नहीं है। तुम रूपांतरित हो सको! __लेकिन उतनी बात मेरे कहने से ही नहीं होगी, तुम्हारे समझने से भी होगी। मेरा कहना आधा है। एक हाथ मैं बढ़ाता हूं, एक हाथ तुम भी बढ़ाओ तो मिलन हो जाए। मैं कहे चला जाऊं और तुम्हारे भीतर कुछ भी अंतर्दृष्टि न जगे तो तुम्हारा हाथ तो बढ़ता नहीं, मेरा हाथ बढ़ा रहेगा; उससे कुछ मेल नहीं होने वाला है। तुम भी उठो और थोड़े जगो। और ऐसा ही थोड़ी-थोड़ी करवटें, ऐसा ही थोड़ी-थोड़ी आंख का खुलना, ऐसा ही थोड़ी-थोड़ी झलक का आना मार्ग बन जाता है।
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