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एस धम्मो सनंतनो
श्रद्धा न भी आई तो चलेगा; तुम्हें अपने पर संदेह आ जाए, इतना ही काफी है, इतने से काम हो जाएगा।
कोई तलवार की जरूरत नहीं है। जहां सुई से काम चल जाए, वहां तलवार का करोगे भी क्या ? मैं सुई ही सही, छोड़ो तलवार, लेकिन इतने से काम हो जाने वाला है। और जब काम हो जाएगा तब तलवार भी दिखाई पड़नी शुरू हो जाएगी।
मुझे पता है, तुम मुझे तभी समझ पाओगे, जब तुमने स्वयं को समझ लिया होगा । मैं तुम्हारा स्वयं होना हूं।
भगवान का और कोई अर्थ नहीं होता; भगवान का कुल इतना ही अर्थ होता है : जिसने उसे जान लिया, जो सबके भीतर है । जिसने यह जान लिया कि मैं नहीं हूं, वही है । जो मिट गया, वही भगवान है। जो है, वह भगवान नहीं है।
मैं एक अनुपस्थिति हूं, एक शून्य ! उस शून्य से अगर तुम थोड़ा सा राग बना लो - श्रद्धा – तो उस शून्य के पार देखने की क्षमता तुम्हें आ जाएगी। वह शून्य तुम्हारी लिए खिड़की बन सकता है।
आम चूसने की फिक्र करो, गुठलियां क्यों गिनते हो ? कहीं ऐसा न हो कि ऋतु निकल जाए, तुम गुठलियां गिनते बैठे रहो, फिर पीछे बहुत पछताओगे । कहीं ऐसा न हो कि मेहमान जा चुके, तब तुम्हारी समझ में आए, तब पीछे बहुत पछताओगे ।
लेकिन मन की हालत ही यही है कि वह पीछे पछताता है, रोता है। मौजूद को खोता है। जा चुका, उसके लिए रोता है । जो है, उसे देखने में असमर्थ; जो नहीं हो जाता है, उसकी याद में - उसकी याद में बड़े मजार बनाता है, चिराग जलाता हैं।
तुम्हारे सब मंदिर तुम्हारे मन की इस मुर्दा आदत के सबूत हैं । तुम्हारे काबा, तुम्हारे शिवालय, तुम्हारे मरे हुए मन की आदत के सबूत हैं।
ऐसी भूल में न पड़ो। ऐसी भूल तुम पहले भी कर चुके हो। जरूरी नहीं कि यह भूल तुम पहली दफा कर रहे हो। यह संसार बड़ा लंबा चल रहा है। तुम बहुत पुराने यात्री हो। इस रास्ते पर तुम नए नहीं हो। अनेक ऐसे वक्त आए, जब तुम बुद्धों के पास से गुजरे हो, लेकिन यही सवाल !
गलत सवाल मत पूछो। इससे क्या लेना कि बुद्ध भगवान हैं या नहीं ? बुद्ध से भी लोग यही पूछते हैं, महावीर से भी यही पूछते हैं, क्राइस्ट से भी यही पूछते हैं। तुम यह पूछो मत। इससे होगा क्या? इससे पूछने से सार क्या ? और कौन तुम्हें प्रमाण दे सकता है ? स्वयं भगवान भी तुम्हारे सामने खड़ा हो तो भी यह संदेह तो रहेगा ही कि पता नहीं ! प्रमाण क्या देगा ? भगवान भी प्रमाण क्या देगा ?
शायद इसीलिए तो तुम्हारे सामने खड़ा होने से डरता है, छिपा - छिपा रहता है। कितने घूंघट डाल रखे हैं उसने ? सीधा सामने नहीं आता; क्योंकि सामने आया कि तुम यही पूछोगे, आप भगवान हैं, इसका प्रमाण क्या? कैसे मानें ?
जरूरत ही क्या है ? मानने का कोई सवाल नहीं है। तुम्हारे भीतर एक कांटा है
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