________________
जीवन ही मार्ग है
इसलिए बुद्ध पुरुषों का अनुसरण नहीं किया जा सकता। पक्षियों के पदचिह्न नहीं बनते आकाश में। रास्ते पर कोई चलता हो, पदचिह्न बनते हैं; तुम पीछे-पीछे पैरों में पैर रखकर चल सकते हो। इसलिए तो बुद्ध पुरुषों का कोई मार्ग निर्मित नहीं होता। आकाश में पक्षी उड़ते हैं, चिह्न तो छूटते नहीं, पक्षी उड़ जाता है, आकाश खाली का खाली रह जाता है।
ऐसा ही चैतन्य के आकाश में भी है। इसलिए बुद्धों से समझना, अनुकरण मत करना। मार्ग तो तुम्हें अपना ही खोजना पड़ेगा। हर पक्षी को अपना ही आकाश खोजना पड़ेगा। कोई बंधे-बंधाए रास्ते नहीं हैं।
इसीलिए तो बुद्धों के पीछे जाना इतना दुरनुसरणीय है, इतना कठिन है। रास्ता होता तो हम सब चल लेते। रास्ता अगर होता तो हमने अब तक तो मील के सब पत्थर लगा लिए होते। रास्ता अगर होता तो चलते क्यों हम? यान चला देते, बसें दौड़ा देते। परमात्मा की तख्ती लगी हुई बसें सीधी परमात्मा के घर में प्रवेश कर जातीं।
रास्ता नहीं है। बुद्ध चलते हैं, पहुंच भी जाते हैं, रास्ता खो-खो जाता है। रास्ता बनता ही नहीं। इसलिए जिनको तुमने रास्ता समझा है, कहीं गलती कर रहे होओगे। हिंदू, मुसलमान, ईसाई, जैन, इनको लोग रास्ता समझे हैं। बुद्ध पुरुष पीछे रास्ता छोड़ते ही नहीं। महावीर चले, पहुंचे; लेकिन जैन धर्म ऐसा कोई रास्ता नहीं बनता। बुद्ध चले, पहुंचे; लेकिन बुद्ध धर्म ऐसा कोई रास्ता नहीं बनता।
बुद्ध पुरुषों की सुगंध लो, बुद्ध पुरुषों की समझ लो, बुद्ध पुरुषों का सानिध्य लो, सत्संग लो; चलना तुम्हें अपने ही रास्ते पर पड़ेगा, खोजना अपना ही रास्ता पड़ेगा। __ और बड़ी कठिनाई यह है कि यह रास्ता जैसे तुम चलते हो, वैसे ही बनता है। जैसे कोई घने जंगल में जाता है, कोई रास्ता पहले से नहीं है। तुम चलते जाते हो, घास हटता जाता है, पगडंडी बनती जाती है। जितना तुम चलते हो, उतना ही रास्ता बनता है। तुमसे आगे रास्ता तैयार नहीं है, रेडीमेड नहीं है। · पर यह अच्छा है। अच्छा है कि परमात्मा की तरफ बसें नहीं जातीं; अन्यथा जाने का मजा ही चला गया होता; अन्यथा भीड़ पहुंच गई होती। जो पहुंचने की क्षमता वाले लोग थे वे कहीं और जाते; फिर परमात्मा की तरफ न जाते। वह बात ही व्यर्थ हो जाती।
निराले हैं अंदाज दुनिया से अपने
कि तकलीद को खुदकुशी जानते हैं फिर बुद्ध, महावीर, कृष्ण, कबीर वहां न जाते। फिर क्राइस्ट, मोहम्मद वहां न जाते। उनके अंदाज और हैं। उसी अंदाज से असली परमात्मा पैदा होता है-उसी तुम्हारी निजता से, तुम्हारी खूबी से, तुम्हारी विशिष्टता से, अपने रास्ते को खोजने के साहस से।
133