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________________ एस धम्मो सनंतनो कमजोर दूसरे के रास्ते पर चलता है। साहसी अपना रास्ता खोजता है; खोजता नहीं, बनाता है; उसी से आत्मा का जन्म होता है। ___जिनका कोई संग्रह नहीं है, भोजन में संयत, जिनके आस्रव क्षीण हुए, जो आहार में आसक्त नहीं, शून्य तथा अनिमित्त विमोक्ष जिनका गोचर है, उनका पद आकाश में पक्षियों की भांति है।' बुद्ध पुरुषों के कोई कारागृह नहीं हैं; खुला आकाश है उनका। जहां-जहां हमने मंदिर-मस्जिद खड़े किए हैं, वहीं-वहीं कारागृह खड़े हो गए हैं। यह भी जिंदां वह भी जिंदां क्या है मस्जिद, क्या है शिवालय सब कारागृह हैं। बुद्ध पुरुषों का तो आकाश है। अगर असली मंदिर खोजना हो, आकाश में खोजना। जमीन पर तो जो बनाए गए हैं वे आदमी के हैं; सोए हुए आदमी के हैं। वहां तो जो चल रहा है, वे शामक दवाएं हैं। जो घंटनाद चल रहा है, जो पूजा-पाठ चल रहा है, वे सब ठीक से सोने की व्यवस्थाएं हैं। बुद्ध पुरुषों का मंदिर देखना हो तो आकाश में देखना, ऊपर की तरफ देखना, जहां कोई सीमा नहीं। आकाश यानी शून्य। और जब तुम बाहर के आकाश को देखने में समर्थ हो जाओगे, बाहर के शून्य को तुम्हारी आंखें पात्र हो जाएंगी, बाहर के आकाश के साथ संलग्न हो जाएंगी, तो तुम भीतर के आकाश को भी देखने में समर्थ होने लगोगे। बाहर का शून्य तुम्हें भीतर के शून्य की ही याद दिलाएगा। बाहर का शून्य तुम्हारे भीतर के शून्य को सुगबुगाएगा। बाहर का शून्य तुम्हारे भीतर के शून्य को जगाएगा। ____ और जिस दिन बाहर का शून्य और भीतर का शून्य मिलता है, उसी घड़ी का नाम निर्वाण है। उसे तुम परमात्मा कहो, मोक्ष कहो, या कोई और नाम दो। सभी नाम एक से हैं, क्योंकि उसका कोई नाम नहीं है। आज इतना ही। 134
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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