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जीवन ही मार्ग है
मंजिलें साथ लिए राह पे चलते रहना जीवन तो रफ्तार का नाम है, गति का। जीवन की कोई मंजिल नहीं है। बहुत मंजिलें आती हैं, मंजिल नहीं आती। सब मंजिलें पड़ाव हैं, ठहरना और आगे बढ़ जाना।
जिंदगानी है फकत गर्मिए-रफ्तार का नाम वह जो उष्णता है गति की, वही जिंदगी है। - मंजिलें साथ लिए राह पे चलते रहना
मंजिलों को आगे मत रखना–साथ लिए। मंजिलों को भविष्य में मत रखना-आज लिए। मंजिलों को कल पर मत टालना।
___मंजिलें साथ लिए राह पे चलते रहना तो तुम डबरों की बतखें न हो जाओगे, तुम मानसरोवर के हंस हो जाओगे।
इसी अर्थ में हमने संन्यासियों को हंस और परमहंस कहा है। मानसरोवर की खोज पर जो निकले हैं, दूर असीम से मिल जाने की जिनकी तड़फ है, मिट जाने की जिनकी तड़फ है, खो जाने की जिनकी तड़फ है, बचने का जिन्हें अब मोह नहीं।
जो बचने के मोही हैं, वे घर बनाते हैं। जो अपने को खो देने को तैयार हैं, वे कोई घर नहीं बनाते। और मजा यह है कि जो बचाते हैं, वे मिट जाते हैं। जो खो देते हैं, वे कभी भी नहीं मिटते। ___ 'जिनका कोई संग्रह नहीं है, जो भोजन में संयत हैं, शून्य और अनिमित्त विमोक्ष जिनका गोचर है, उनकी गति आकाश में पक्षियों की गति की भांति दुरनुसरणीय है।' ___ 'जिसके आस्रव क्षीण हो गए हैं, जो आहार में आसक्त नहीं है, और शून्य तथा अनिमित्त विमोक्ष जिसका गोचर है, उसका पद आकाश में पक्षियों की गति की भांति दुरनुसरणीय हो गया है।' 'जिनका कोई संग्रह नहीं है।'
संग्रह करता है अहंकार। क्योंकि जितना तुम कह सको मेरा, उतना ही तुम्हारा मैं बड़ा हो जाता है। जितना तुम्हारा मेरा बड़ा होता है, उतना ही मैं बड़ा हो जाता है। जितना मेरा छोटा होता है, उतना मैं छोटा हो जाता है। बड़ा धन है, बड़ा पद है, बड़ा राज्य है, तो जो तुम्हारे राज्य की सीमा है, वही तुम्हारे मैं की सीमा है। राज्य सिकुड़ने लगे, तुम्हारा मैं भी सिकुड़ने लगा।
लोग धन के लिए थोड़े ही धन को चाहते हैं। पद के लिए थोड़े ही पद को चाहते हैं। यश के लिए थोड़े ही यश को चाहते हैं। यह सारी आकांक्षा अहंकार को भरने की आकांक्षा है-मैं कुछ हूं, ना-कुछ नहीं। __ जिसने यह समझा कि यह मैं ही सारे दुखों का कारण है, वह ना-कुछ होने को तैयार हो जाता है। संग्रह की वृत्ति उसकी खो जाती है, परिग्रह का भाव विलीन हो जाता है, पकड़ता नहीं।
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