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________________ एस धम्मो सनंतनो तुमने कभी गौर किया कि तुम कितनी चीजें दूसरों के पीछे चलने लगते हो, करने लगते हो। किसी ने नया मकान बना लिया, तुम बनाने लगे। यह भी तो पूछो, जरूरत थी? कोई नए कपड़े बना लाया, तुम बनाने लगे। किसी की नई साड़ी देख ली, तुम चले। तुम्हें जरूरत थी? अपनी जरूरत से चलो. अपने भीतर से चलो. अन्यथा तुम आत्मघात कर रहे हो। ऐसे दूसरों के पीछे अगर दौड़ते रहे तो दौड़ोगे बहुत, पहुंचोगे कहीं भी नहीं। 'हंस जिस प्रकार डबरे छोड़ देते हैं...।' सबने डबरे बना रखे हैं अपने-अपने। घबड़ा गए हैं बहने से; हिम्मत खो दी है। और जहां हिम्मत गई, वहीं आत्मा गई। __ बहो; मिट तो जाना ही है। लेकिन नदी के मिटने में एक शान है। डबरे के मिटने में एक गरीबी है, दीमता है, दरिद्रता है। डबरा भी सूख जाएगा। सूरज की धूप उसको भी उड़ा देगी, वह भी मिटेगा, लेकिन बड़ा तड़फता हुआ मिटेगा। झिझकता हुआ मिटेगा। पकड़ता हुआ-जमीन को पकड़े रखेगा, जोर से पैर गड़ाकर रुका रहेगा। जबरदस्ती उसकी मौत घटेगी, स्वेच्छा से न मर सकेगा। सरलता से न बह सकेगा। मौत उसकी बड़ी दुखदायी होगी, बड़ी पीड़ादायी होगी। नदी भी मरेगी, नाचती हुई मरेगी, समाधिस्थ होकर मरेगी। नदी की गुनगुनाहट देखी, जब सागर में गिरती है? नाच देखा, जब सागर में गिरती है? नदी में उठती लहरों की तरंगें देखीं, जब सागर में गिरती है ? मिट वह भी रही है। डबरे का जल भी वहीं पहुंच जाएगा सागर में, जरा कठिनाई से पहुंचेगा, जद्दोजहद से पहुंचेगा। नदी स्वेच्छा से जा रही है, अपनी मौज से जा रही है। अगर तुम मरना सीख जाओ अपनी मौज से तो मौत भी बड़ी सुंदर है। संन्यासी भी मरता है, पर उसकी मौत बड़ी नाचती हुई है; वह मौत के पीछे खड़े परमात्मा को देखता है। वह मौत को अपने मिटने की तरह नहीं देखता, सागर होने की तरह देखता है कि मैं अब सागर हुआ! अब सागर हुआ! डबरा देखता है, मैं मरा! मैं मरा! उसे सागर दिखाई नहीं पड़ता है भी बहुत दूर। वह कभी बहा नहीं है, नहीं तो सागर के करीब पहुंच जाता। बीच में बड़ी बादलों की कतारें होंगी, तब कहीं सागर आएगा। सभी मरते हैं। गृहस्थ भी मरता है, संन्यासी भी मरता है। पर मृत्यु का भी गुणधर्म बदल जाता है। अगर तुम जीए ठीक से तो तुम मरोगे भी ठीक से। अगर तुम नाचते जीए तो नाचते मरोगे। तुम्हारे जीवन की शैली ही तुम्हारी मृत्यु की शैली होगी। और मृत्यु सील लगा जाएगी तुम्हारे अस्तित्व पर; कह जाएगी कि तुम कौन थे! कह जाएगी, तुम क्या थे! अगर तुम तड़फते मरे तो तुम खबर दे गए कि तुम ठीक से जीए न, चूक गए। अधूरे गए, कच्चे गए। जिंदगानी है फकत गर्मिए-रफ्तार का नाम 130
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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