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________________ जीवन ही मार्ग है हैं, सीमाएं छोड़ देते हैं। घर यानी सीमा। सरोवर नहीं बनते, सागर की तलाश पर निकलते हैं। सागर की तलाश में ही तो सरोवर सरिता बन जाता है। सागर की तलाश न हो तो डबरा बन जाता है। धीरे-धीरे सूखता है और सड़ता है और दुर्गंध उठती है बस। डबरे का कसूर क्या है? सड़ क्यों जाता है? जहां सीमा है, वहीं सड़ांध आ जाती है। डबरे ने घर बना लिया, बहने से डरा, अनजान से घबड़ाया। पता नहीं, आगे क्या हो! यहीं ठहर गया, घर बना लिया। नदी बढ़ती चली जाती है। आज बड़ा सुंदर किनारा है माना, लेकिन फिर भी पकड़कर रुक जाना नहीं। क्योंकि सौंदर्य को भी अगर पकड़कर रुक जाओ तो सौंदर्य भी सड़ जाता है। आज माना कि सब ठीक है, लेकिन अगर इसे तुमने जोर से मुट्ठी में बांध लिया और छोड़ने में घबड़ा गए तो यह भी राख हो जाएगा। यह सुंदर है तुम्हारे बहने में। तुम बहते रहो, नदी स्वच्छ बनी रहती है, कुंआरी बनी रहती है। बहती रहती है। नदी के कुंआरेपन को कोई छीन नहीं सकता, क्योंकि बहनेपन में कुंआरापन है। संन्यास कुंआरापन है। संन्यास यानी सदा बहते रहना। निराले हैं अंदाज दनिया से अपने कि तकलीद को खुदकुशी जानते हैं संन्यास एक निराला अंदाज है। भीड़ के पीछे चलने को संन्यासी आत्मघात समझता है। निराले हैं अंदाज दुनिया से अपने कि तकलीद को खुदकशी जानते हैं तकलीद यानी भीड़। सभी घर बनाए बैठे हैं, तुम भी घर बनाने लगे। सभी विवाह रचाए बैठे हैं, तुम भी विवाह रचाने लगे। सभी बैंक में धन इकट्ठा कर रहे हैं, तुम भी करने लगे। सभी जो कर रहे हैं, वही तुम भी करने लगे। तुम ने यह पूछा ही नहीं कि यही करने को मैं यहां आया हूं? लेकिन सभी जो कर रहे हैं! तुम्हें होश है, तुम क्या कर रहे हो? तुम अनुकरण में पड़े हो। यह तो पूछो कि तुम्हें करना है? अगर यही तुम्हारा कृत्य है तो करो; लेकिन दूसरे कर रहे हैं...। मुल्ला नसरुद्दीन के साथ मैं एक दिन उसकी गाड़ी में बैठकर आ रहा था। भरी धूप, गर्मी के दिन, और वह कांच न उतारे खिड़कियों के। मैंने उससे पूछा कि मार डालोगे? वह कहने लगा, मर जाना ठीक है, लेकिन मोहल्ले वालों को यह पता चल जाए कि गाड़ी एयरकंडीशंड नहीं, यह बरदाश्त के बाहर है। दूसरों के पास एयरकंडीशंड गाड़ी है। हवा के झोंके बाहर हैं, लेकिन वह दरवाजे-खिड़कियां बंद किए बैठा है। पसीने से तरबतर है, लेकिन बरदाश्त करना ही होगा। दूसरों का अनुकरण! 129
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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