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________________ एस धम्मो सनंतनो ऐसा न हो कि हम जी ही न पाएं। ज्यादा देर की चिंता कहीं जीवन को ही नष्ट न कर दे। अब एक रात अगर कम जीए तो कम ही सही यही बहुत है कि हम मशअलें जला के जीए मशालें जलाकर जीए, रोशनी में जीए। एक क्षण भी अगर कोई मशालें जलाकर जी ले तो हजारों जन्मों से ज्यादा है। और तुम हजारों जन्म घसिटते रहो, घसिटते रहो, जीने का मौका ही न आए—आता ही नहीं, क्योंकि आज तुम कल की तैयारी करते हो। आज गंवाया। _ और आज ही सब कुछ है, एकमात्र संपदा है। कल तुम परसों की तैयारी करोगे, क्योंकि कल फिर आज होकर आएगा। और आज तो तुम जीते नहीं। आज तुम सदा कल पर न्यौछावर करते हो। फिर तुम जीओगे कब? एक दिन मौत आ जाएगी और कल की सारी संभावना छीन लेगी। तुम कोरे के कोरे रह जाओगे। जन्मते बहुत लोग हैं, जीते उतने बहुत लोग नहीं। जन्मते करोड़ों हैं, जीता कोई एकाध। जीता वही है, जो आज जीता है। __ जीने को गंवाने का सबसे सुगम तरीका है-रामबाण–कि तुम कल की आकांक्षा, कल का हिसाब, कल की सुरक्षा में जीते रहो। इंतजाम करो, जीओ मत। व्यवस्था करो कि जब व्यवस्था पूरी हो जाएगी, तब जीएंगे। व्यवस्था कभी पूरी न होगी, तुम पूरे हो जाओगे। आंख पड़ती है कहीं पांव कहीं पड़ता है सबकी है तुम को खबर अपनी खबर कुछ भी नहीं सब हिसाब लगा रहे हो-बच्चों का, पत्नी का, मां-बाप का, परिवार का, समाज का, दुनिया का; इजरायल में क्या हो रहा है, कंबोडिया में क्या हो रहा है, वियतनाम में क्या हो रहा है... आंख पड़ती है कहीं पांव कहीं पड़ता है सबकी है तुमको खबर अपनी खबर कुछ भी नहीं ऐसे ही बेहोशी में चलते-चलते कब्र में गिर जाओगे। मशालें जलाकर जीयो। थोड़ी रोशनी करो। छोड़ो फिक्र और सब। यह जीवन बड़ा बहुमूल्य है, इसे ऐसे मत गंवा दो। इसे रूपांतरित करो, इसे गुणवत्ता दो, इसे भगवत्ता दो। 'स्मृतिवान पुरुष उद्योग करते हैं, वे गृह में नहीं रमते।' नदी की धार हैं वे, बहते हैं; बंधे तालाब नहीं। 'हंस जिस प्रकार डबरे छोड़ देते हैं, उसी प्रकार वे सभी घर छोड़ देते हैं।' घरों से मतलब नहीं है। बुद्ध पुरुष क्षुद्र बातें करते ही नहीं। क्षुद्र घरों की क्या बात करेंगे? बुद्ध पुरुष की बात साफ है। हंस जिस प्रकार डबरे छोड़ देते हैं, मानसरोवर की तलाश करते हैं, वैसे ही स्मृतिवान पुरुष असीम की खोज में लगते 128
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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