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जीवन ही मार्ग है
होती है, जिन्हें परमात्मा काफी नहीं है, वे अपने लिए घर बनाते हैं।
परमात्मा काफी है, काफी से ज्यादा है; पर्याप्त ही नहीं है, पर्याप्त से बहुत ज्यादा है। जिसको ऐसी समझ आनी शुरू हो गई, वह उद्योग करता है, श्रम करता है, जझता है, लेकिन सुरक्षा नहीं खोजता। और जीवन के रहस्य उसी को पता चलते हैं, जो असुरक्षा में जीने की कला जानता है।
प्रेम करना, विवाह नहीं। विवाह सुरक्षा है, प्रेम असुरक्षा है। लेकिन दो व्यक्ति प्रेम में पड़ते हैं कि तत्क्षण चिंता में पड़ जाते हैं कि विवाह करें। क्योंकि अगर विवाह न किया, फिर कल क्या होगा? वृक्ष जी रहे हैं, पशु-पक्षी जी रहे हैं, कुछ भी नहीं हुआ। कितने कल गुजर गए। सिर्फ आदमी को कल की फिक्र है।
तुम्हें अपने प्रेम पर भरोसा नहीं है, इसीलिए तुम सुरक्षा खोजते हो कानून की। प्रेम पर भरोसा हो तो कानून की क्या सुरक्षा! आज अगर प्रेम है तो कल भी रहेगा। कल तो और बढ़ जाएगा। इतना समय बीत चुका होगा, गंगा और थोड़ी बड़ी हो जाएगी, जीवन के झरने उसे और थोड़ा भर देंगे। .. लेकिन तुम्हें आज ही कहां भरोसा है कि प्रेम है? आज ही गंगा सिकुड़ी-सिकुड़ी है। आज ही गंगा सूखी-सूखी है। आज ही ऐसा लगता है कि कब गंगा उड़ी! कब गई! इसके पहले कि गंगा उड़ जाए और रेत का रेगिस्तान रह जाए, कानून की गंगा बना लो। इसके पहले कि गंगा उड़ जाए, कानून के नल लगा लो, कानून की टोंटी लगा लो; उससे थोड़ा जल तो मिलता रहेगा। लेकिन गंगा को खोकर नल की टोंटी को पा लेना बड़ा महंगा सौदा है। ___ मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवाह मत करना; मैं यह कह रहा हूं कि विवाह प्रेम का परिपूरक न बन जाए। सामाजिक व्यवस्था है, ठीक; लेकिन तुम्हारी आंतरिक सुरक्षा न हो। तुम विवाह पर निर्भर मत रहना, तुम प्रेम पर निर्भर रहना, तो तुम संन्यस्त हो; तो तुम घर नहीं बना रहे; तो तुम कानून में सुरक्षा नहीं खोज रहे; तो तुम खुले हो; तो तुम कहते हो, कल जो होगा, देखेंगे; कल जो दिखाएगा, देखेंगे, कल के लिए आज से इंतजाम नहीं किया है।
__ अब एक रात अगर कम जीए तो कम ही सही
यही बहुत है कि हम मशअलें जला के जीए क्या फर्क पड़ता है, एक दिन कम जीए?-जीए! लेकिन लोग ऐसे हैं कि वे कहते हैं, एक दिन ज्यादा जी लें; चाहे जीएं या न जीएं। लोग कहते हैं, जिंदगी लंबी हो। यह पूछते ही नहीं कि जिंदगी की लंबाई से जिंदगी का क्या लेना-देना? जीवन की सुरक्षा से जीवन की गहराई का क्या संबंध? लोग जीवन में परिमाण खोजते हैं, गुण नहीं। __जो गुण खोजता है, वही संन्यस्त; जो मात्रा खोजता है, गृहस्थ। जो कहता है, जितनी ज्यादा देर जी लें। इसकी फिक्र ही भूल जाता है कि ज्यादा देर जीने में कहीं
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