SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो अर्थ है : उद्योग करो और सुरक्षा के घर मत बनाओ । इतना सीधा अर्थ भी चूक जाता है। इसको भी बताना पड़ता है। यह तो बिलकुल साफ है, इसमें किसको बताना ! लेकिन धम्मपद पर जितनी भी व्याख्याएं की गई हैं, वे सभी व्याख्याएं यही कहती हैं, घर को छोड़ दो। पच्चीस सौ साल का गलत सलत प्रचार न मालूम कितने लोगों को भटका गया है। बुद्ध यह कह रहे हैं, 'स्मृतिवान पुरुष उद्योग करते हैं। ' इसका क्या अर्थ हुआ ? इसका अर्थ हुआ, वे कल के लिए कोई भी सुरक्षा आयोजित नहीं करते। कल जब आएगा, कल की चुनौती को कल ही निपटेंगे। आज अगर हम जी सके तो कल भी जी लेंगे। और आज जिस प्रज्ञा के आधार पर, जिस होश के आधार पर जीवन को सुलझाया, उसी होश के आधार पर कल भी सुलझा लेंगे। आज हम कल के लिए घर क्यों बनाएं ? भविष्य के लिए आज हम चिंता क्यों करें ? जीसस का वचन है : लोमड़ियों के लिए भी घर हैं सिर छिपाने को, लेकिन परमात्मा के बेटे के लिए कोई स्थान नहीं, जहां वह सिर छिपा ले । वही मतलब है। जीसस ने अपने शिष्यों से कहा, देखो लिली के फूलों को जो खेत में लगे हैं; इन्हें कल की कोई भी चिंता नहीं । ये आज खिले हैं; इन्हें कल की कोई भी फिक्र नहीं। इसलिए इनके माथे पर चिंता की कोई रेखा नहीं। सम्राट सोलोमन भी इतना सुंदर न था अपने महलों में, जितने ये फूल निश्चित परम सौंदर्य को उपलब्ध हुए हैं। अगर संन्यास सच्चा हो तो संन्यास से बड़े सौंदर्य की और कोई घटना नहीं । क्योंकि इसका अर्थ होता है कि संन्यासी के मन पर भविष्य का कोई बोझ नहीं । इसका दूसरा अर्थ होता है कि संन्यासी के मन पर अतीत का भी कोई बोझ नहीं। जो भविष्य के लिए घर नहीं बनाता, वह अतीत के घरों को क्यों ढोएगा ? जो कल घर बनाए थे, वे कल काम आ गए। जो कल काम में आएंगे, कल बना लेंगे; आज पर्याप्त है। यह संन्यास की दशा है। सारे चमन को मैं तो समझता हूं अपना घर तू आशियां - परस्त है, जा आशियां बना संन्यासी का अर्थ यह नहीं है कि उसने घर छोड़ दिया। संन्यासी का अर्थ है, उसने सारे अस्तित्व को अपना घर मान लिया; अलग से घर बनाने की जरूरत न रही। संन्यासी का अर्थ यह है कि यह पूरा अस्तित्व, यह आकाश, यह पृथ्वी अपनी है। यह जीवन अपना है; ये चांद-तारे अपने हैं । यह सारा विस्तार घर है। अब और अलग घर बनाने की क्या जरूरत ? हां, जिनकी आकाश से दुश्मनी है, जिनको चांद-तारों से भय है, जिन्हें अपनी सुरक्षा अलग से करनी है, यह पूरे परिपूर्ण की सुरक्षा जिनके लिए ना काफी मालूम 126
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy