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________________ एस धम्मो सनंतनो __ वे गए; उन्होंने यह किया। दूसरे दिन मुझे बताया कि और झंझट खड़ी हो गई। पत्नी एकदम रोने-चिल्लाने लगी कि तुम क्या शराब पीकर आए हो? तुमको हो क्या गया है? तुम्हें होश है कि तुम क्या कर रहे हो? कभी जिंदगी में आइसक्रीम न लाए थे! जो भी तुम करोगे, इससे बहुत फर्क न पड़ेगा, क्योंकि तुम वही हो। तुम जो भी करोगे, वह तुम्हारी गांठों से ही निकलेगा। वह रस तुम्हारी गांठों से ही रिस रहा है। वह मवाद तुम्हारी गांठों में भरी है। परिणाम वही होंगे। कुछ भी करो, दुख हाथ आता है। लेकिन फिर भी तुम यह नहीं देखते कि कहीं दुख मैं ही तो पैदा नहीं कर रहा हूं! सभी दुख देने को तत्पर हैं तुम्हें! आखिर सभी को ऐसी क्या पड़ी है। सभी इतने दीवाने क्यों हैं कि तुम्हें दुख दें? लेकिन अहंकार यह मानने को राजी नहीं होना चाहता कि मैं अपने दुख का कारण हो सकता हूं। जिस दिन तुम यह समझ जाओगे, उसी दिन से जिंदगी में क्रांति शुरू होती है। उस दिन से फिर हम दूसरों को बदलने नहीं जाते। तुम अपनी ग्रंथियों को बदलना शुरू करते हो। __ तुमने जो पत्नी चुनी है, तुमने चुनी है। तुम्हारे भीतर कोई गलती होगी। पत्नी ने पति को चुना है, उसने चुना है; उसके भीतर कोई गलती होगी। दूसरे के दोष देखते-देखते तो तुमने कितने जन्म गुजारे; कहीं न पहुंचे। अब तो जागो और अपना दोष देखना शुरू करो। वहीं से परिवर्तन शुरू होता है। तुम फिर एक दूसरी ही दुनिया में रहने लगते हो, क्योंकि तुम दूसरे हो गए होते हो। तुम बदले कि दुनिया बदली। ‘जिसकी सभी ग्रंथियां क्षीण हो गयीं, उसे कोई दुख नहीं होता।' भीतर से अहंकार हटाओ, तुम पाओगे, अब तुम्हारा कोई अपमान नहीं कर सकता-असंभव! सारी दुनिया भी मिलकर तुम्हें अपमानित करना चाहे तो नहीं कर सकती। एक सूफी फकीर एक गांव में गया। लोगों ने उसका अपमान करने के लिए जूतों की माला बनाकर पहना दी। वह बड़ा प्रसन्न हुआ, उसने माला को बड़े आनंद से सम्हाल लिया। लोग बड़े हैरान हुए। क्योंकि वे आशा कर रहे थे कि वह नाराज होगा, गाली देगा, झगड़ा खड़ा करेगा। इच्छा ही यह थी कि झगड़ा खड़ा हो जाए। बड़े झुक-झुककर उसने नमस्कार किया; और जैसे कि फूलों की माला हो, गुलाब पहनाए हों। आखिर एक आदमी से न रहा गया। उसने पूछा, मामला क्या है? तुम्हें होश है? यह जूतों की माला है। उसने कहा, माला है, यही क्या कम है? जूतों की फिक्र तुम करो, हम माला की फिक्र कर रहे हैं। और चमारों का गांव है, करोगे भी क्या तुम? फूल तुम लाओगे कहां से? यह कोई मालियों की बस्ती तो है नहीं; चमारों की बस्ती है। पहचान गए हम कि चमारों की बस्ती है। मगर धन्यभाग कि तुम माला 124
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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