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________________ .. जीवन ही मार्ग है ग्रंथियां क्या हैं? यह शब्द समझने जैसा है। यह बुद्धों के मनोविज्ञान का बड़ा बहुमूल्य शब्द है। पश्चिम में अभी-अभी मनोविज्ञान ने इसके समानांतर शब्द गढ़ा है : कांपलेक्स; उसका अर्थ भी ग्रंथि है। लेकिन भारत में यह शब्द पांच हजार साल पुराना है। और जो लोग मुक्त हो गए हैं, उनको हमने कहा है : निग्रंथ, जिनकी ग्रंथि छूट गई, जिनके कांपलेक्स समाप्त हो गए। ग्रंथि क्या है ? ग्रंथि का सीधा अर्थ होता है : गांठ। गांठ का मतलब क्या होता है? गांठ का मतलब होता है : गहरी आदत। इतनी गहरी आदत कि तुम खोलो भी तो गांठ अपने से बंध जाती है; वापस-वापस बंध जाती है। तुम इधर खोलकर छोड़ भी नहीं पाते...। ___ जैसे कि कहावत है कि कुत्ते की पूंछ को कोई बारह वर्ष भी पोंगरी में रखे तो भी वह तिरछी की तिरछी! वह बारह वर्ष के बाद जब तुम पोंगरी अलग करोगे, वह तत्क्षण तिरछी हो जाएगी-ग्रंथि! आदत बड़ी गहन है उस पूंछ को। तुमने कभी इसका अपने जीवन में विचार किया कि तुम कितनी बार नहीं जाग गए हो, कितनी बार नहीं समझ गए हो कि क्रोध जहर है! कुत्ते की पूंछ हो गई है। हजार बार समझ लेते हो, लेकिन जब फिर मौका आता है, फिर तिरछी की तिरछी; फिर क्रोध हो जाता है। इस ग्रंथि को खोलना पड़े। खोलने से ही काम न चलेगा, क्योंकि तुम फिर-फिर बांध लेते हो। तुम भूल ही गए हो कि तुमने कहां-कहां अपने भीतर ग्रंथियां बांधीं। दोष तुम दूसरे को देते हो; तुम कहते हो, इस आदमी ने कुछ ऐसी बात कही कि क्रोध आ गया। क्रोध किसी आदमी से नहीं आता, अपनी गांठ से आता है। तुम कहते हो, किसी आदमी ने गाली दे दी इसलिए मैं क्रोधित हो गया। लेकिन गाली गांठ से टकराए तो ही क्रोध आता है। अगर भीतर गांठ न हो, गाली आर-पार निकल जाती है; कहीं टकराती नहीं। ___ जिसे हम अभी जीवन कहते हैं, वह ग्रंथियों का जीवन है। उसमें सब गांठ से चल रहा है काम। करीब-करीब तुम्हारे संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है कि तुम कल क्या करोगे। क्योंकि तुमने जो आज किया है, वही तुम कल करोगे। इसलिए तो ज्योतिषी तुम्हें धोखा देने में समर्थ हो जाते हैं। तुम्हारी जीवन की व्यवस्था ऐसी है—कोल्हू के बैल जैसी, गोल चक्कर में घूमती है। अब यह भी कोई बड़ी कठिनाई की बात है कि कोल्हू के बैल को कोई कह दे कि अब फिर तेरा कदम फलां जगह पड़ेगा? पड़ने ही वाला है, वहीं पड़ता रहा है। ज्योतिषी तुम्हारे संबंध में सच हो जाता है, क्योंकि जानता है तुम कोल्हू के बैल हो। तुम जो अब तक करते रहे हो, वही तुम करते रहोगे; वही तुम दोहराए चले जाओगे। कुछ बातें ज्योतिषी तुमसे नियमित रूप से कह देता है, जिसमें कोई भूल-चूक नहीं होती। जैसे वह हर आदमी से कह देता है, रुपया हाथ में आता है 121
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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