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एस धम्मो सनंतनो
बना रखा है दिखाने के लिए; यह असली नर्क है। तब तुम एक विजिटर की तरह आए थे, अब निवासी की तरह आए। अब तुम्हें मजा मिलेगा। नर्क के द्वार पर भी स्वर्ग की तख्ती लगी है। तख्तियों के धोखे में मत आ जाना।
लोग कांटों से बच के चलते हैं
मैंने फूलों से जख्म खाए हैं असल में कांटे भी होशियार हो गए हैं; फूलों की ओट में छिपे हैं। कांटों से तो सब बचते हैं, फूलों को सब तोड़ना चाहते हैं। जैसे तुम मछलियों को पकड़ने जाते हो तो कांटे पर आटा लगा देते हो। मछली कोई कांटे को थोड़े ही पकड़ने आती है, मछली आटा पकड़ने आती है; फंसती कांटे से है। __ अगर तुम जीवन की इस सारी प्रक्रिया को जागकर देखोगे तो तुम पाओगे, जहां-जहां तुमने दुख पाया, जहां-जहां कांटे मिले, वहां-वहां तुम गए तो सुख की आशा में थे। अभिलाषा तो फूल की थी, कांटा मिला यह बात और।
लेकिन कब जागोगे? कितनी बार यह पुनरुक्त हुआ है कि जब-जब तुमने सुख चाहा, तब-तब दुख पाया; इससे अपवाद कभी हुआ ही नहीं। जब-जब फूल मांगे, तब-तब कांटे मिले। मछलियां भी होशियार हो गई हैं, तुम कब तक रुके रहोगे? मछलियां भी सजग होकर चलने लगी हैं। आदमी फिर-फिर सुख की आकांक्षा करता है।
परिपक्व मनुष्य की यही दशा है कि वह देख लेता है, हर कांटे ने अपना धूंघट बनाया है फूल से। __ जिसने मार्ग पूरा कर लिया है वह शोकरहित हो ही जाएगा, क्योंकि वह सुख की आकांक्षा नहीं करता। उसने फूल ही त्याग दिए, फूल ही छोड़ दिए; अब कांटे उसे धोखा नहीं दे सकते। अब आटे की ही आकांक्षा नहीं करता, अब कांटे कैसे उसकी गर्दन को उलझा लेंगे?
'जो शोकरहित और सर्वथा विमुक्त है।' __ यही अर्थ है सर्वथा विमुक्त होने का। अगर तुम अभी भी सुख की आकांक्षा कर रहे हो, अगर तुम धर्म की तरफ भी सुख की आकांक्षा से ही गए हो, तो तुम्हारा संसार अभी पूरा नहीं हुआ। तुम्हारा धर्म भी तुम्हारे संसार का ही हिस्सा है। धर्म की तरफ तो वही जा सकता है, जिसने जान लिया कि सब सुख दुख ले आते हैं। जिसने यह इतनी गहनता से जान लिया, समझ लिया कि इसका अपवाद होता ही नहीं। सभी सफलताएं असफलता ले आती हैं। सभी सम्मान अपमान को बुलावा दे आते हैं। सभी प्रशंसाओं के पीछे निंदा छिपी है। जन्म के पीछे मौत खड़ी है, जिसने ऐसा देख लिया निरपवाद रूप से, वही सर्वथा विमुक्त है।
जीवन की राह पर जो पक गए, वे सर्वथा विमुक्त हो जाते हैं। 'और जिसकी सभी ग्रंथियां क्षीण हो गई हैं।'
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