SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो पूरा नहीं देख पाए। नींद पूरी नहीं हो पाई। जाग बीच में हो गई; स्वस्थ नहीं जागे, अलसाए-अलसाए जागे। फिर सो जाने का मन है। शास्त्रों में देखो, वे भगोड़ों ने लिखे होंगे। अधिक शास्त्र उन्होंने लिखे हैं। स्वर्ग की कैसी रोचक तस्वीरें खींची हैं! यह वासना की खबर है। अधूरे भाग गए होंगे ये। यहां तो स्त्रियां बूढ़ी भी हो जाती हैं, रुग्ण भी हो जाती हैं, एक न एक दिन हड्डी-मांस-मज्जा की खबर मिलनी शुरू हो जाती है, एक न एक दिन कुरूपता आ जाती है। इन भगोड़ों ने लिखा है कि इनके स्वर्ग में अप्सराएं सोलह साल पर ठहर जाती हैं; वहां से आगे उनकी उम्र नहीं बढ़ती। ये जरूर वासनाग्रस्त लोगों की कल्पना होगी। यहां का सपना ही नहीं टूटा, वहां तक सपना फैला रहे हैं। मरने की दुआएं क्यों मांगं जीने की तमन्ना कौन करे ये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख्वाहिशे-दुनिया कौन करे जिसको समझ आ गई कि कामना ही स्वप्नवत है; इस दुनिया की बात हो या उस दुनिया की ख्वाहिशे-दुनिया कौन करे! वह मांगेगा क्यों? जीने की तो बात दूर, वह मरने की भी आकांक्षा नहीं करता। मरने की आकांक्षा भी जीने की आकांक्षा से पीड़ित लोग करते हैं। जिनको तुम आत्महत्या करते देखते हो, यह मत समझना कि ये जीवन से मुक्त हो गए। इनकी जीवन की आकांक्षा बड़ी प्रगाढ़ थी। इतनी प्रगाढ़ थी कि जीवन उसे पूरा न कर पाया। ये बड़े लोभी थे, लोभ भर न सका। इनकी झोली बड़ी थी, खाली रह गई। इन्होंने जो स्त्री मांगी, न मिली; जो पद मांगा, न मिला; जो धन मांगा, न मिला। ये अपनी शर्तों पर जीना चाहते थे। निराशा में, उदासी में, हारे हुए, ये मृत्यु की आकांक्षा करते हैं। यह वही संन्यासी की भूल है। __कुछ हिम्मतवर एकदम से आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ कमजोर धीरे-धीरे क्रमशः आत्महत्या करते हैं। जिसको तुमने अब तक त्याग कहा है, वह धीमी-धीमी आत्महत्या है—एक-एक कदम अपने को मारते जाओ। स्वप्न से भागने की जरूरत नहीं है। अगर जाग आ गई हो, स्वप्न खुद ही भाग जाता है; तुम्हें नहीं भागना पड़ता। जब तक तुम्हें भागना पड़े, समझना कि स्वप्न अभी सत्य है। जब स्वप्न ही असत्य हो गया तो भागना कहां है? राह पर रस्सी पड़ी हो और तुम सांप समझ लो तो भागते हो; फिर कोई दीया लेकर आ जाए और दिखा दे कि रस्सी है, फिर तो नहीं भागते। बात ही खतम हो गई। भागना किससे है? सांप ही न रहा। संसार जब तक सत्य मालूम होता है, तब तक तुम अभी पके नहीं; अभी बचकानापन कायम है। अभी वासना प्रौढ़ नहीं हुई, पकी नहीं; अन्यथा गिर जाती। लोग कांटों से बच के चलते हैं मैंने फूलों से जख्म खाए हैं 118
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy