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________________ जीवन ही मार्ग है 'जिसने मार्ग पूरा कर लिया है।' जिसने भी मार्ग जीवन का पूरा किया, उसे दिखाई पड़ जाता है : जीवन एक ख्वाब है, एक सपना है। हस्ती अपनी हुंबाब की सी है बुलबुले जैसी । यह नुमाइश सराब की सी है मृगतृष्णा जैसी । जिसने भी जीवन के मार्ग को पूरा कर लिया है, उसे दिखाई पड़ता है कि जैसे एक स्वप्न देखा। जैसे रात जिसने ठीक से गुजार ली है, भोर की ताजी हवाओं में उठकर खयाल आता है कि रात कितने सपने देखे ! जीवन जब तुम्हें सपना जैसा दिखाई पड़ने लगे, तब समझना, मार्ग पूरा हुआ है। मेरी बात सुनकर तुम मान सकते हो कि जीवन सपना है; इससे कुछ हल न होगा। यह तुम्हारा अनुभव होना चाहिए; मेरे कहे क्या होगा? मैं भोजन करूं, तुम्हारा पेट नहीं भरता। मैं नाचूं, इससे तुम्हारे प्राणों में कोई सुरभि पैदा न होगी । मेरी वीणा बजे, इससे तुम्हारी वीणा के सोए हुए तार न जगेंगे। 1 I तुम भोजन करोगे तो तृप्त होओगे । जल की धार तुम्हारे कंठ से गुजरेगी तो तुम्हारी प्यास संतृप्ति में रूपांतरित होगी। जीवन से जल्दी भाग मत जाना। पहली तो भूल कि सोए-सोए जी रहे हो; अब दूसरी भूल मत कर लेना कि सोए-सोए भाग खड़े हो जाओ। जागकर खड़े होना है। जो जागता है, वह पकता है । और परिपक्वता सब कुछ है। अब भी क्रोध होगा, लेकिन जागकर होने देना । अब भी कामवासना आएगी, लेकिन जागे रहना । भीतर कोई जागा ही रहे; कामवासना आए जाए, तुम जागे रहना। तुम देखते रहना, तुम साक्षी रहना । और तुम चकित होओगे कि वह प्रगाढ़ आंधी कामवासना की, आंधी जैसी नहीं है अब, हल्की हवा का झोंका है। जैसे-जैसे तुम जागते हो, वैसे-वैसे उसकी शक्ति कम होती चली जाती है। ন जिस दिन तुम्हारी जाग पूरी होती है, उसी दिन काम से प्रेम का जन्म हो जाता है । फिर तो द्वार पर द्वार खुलते चले जाते हैं। पहला द्वार ही कठिन है। एक बार महल प्रमुख द्वार से प्रवेश हो गया, फिर तो द्वार पर द्वार खुलते चले जाते हैं। क्योंकि कुंजी कुछ ऐसी है कि एक बार हाथ आ गई तो सभी तालों को खोल लेती है। ' जिसने मार्ग पूरा कर लिया है। ' जिसको दिखाई पड़ गया है कि जीवन स्वप्न है। अगर ऐसा दिखाई न पड़ा, तुम भाग गए, तो तुम किसी और जीवन का सपना देखने लगोगे पहाड़ों पर बैठकर, जंगलों में बैठकर, बियाबानों में बैठकर - मोक्ष, स्वर्ग, अप्सराएं, हूरें ! तुम कोई और जीवन का सपना देखने लगोगे । वह सपना यहीं का अधूरा सपना है, जो तुम 117
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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