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________________ एस धम्मो सनंतनो था। तुम्हारे चारों तरफ एक रोशनी का वातावरण है। तुम घबड़ाओ मत, परमात्मा उतरा है। पत्नी समझाती है कि उतरा है और मोहम्मद कहते हैं कि नहीं, किसी और को कहना मत; मैं पागल हो गया हूं। __ बड़ी पीड़ा से एक-एक आयत उतरी वर्षों के अंतराल में; जैसे एक-एक बच्चे को जन्म दिया हो। फिर तुम हो कि कुरान को गोद में रखकर बैठे हो; यह कुरान तुम पर उतरी नहीं। जो कुरान तुम पर नहीं उतरी, वह कुरान नहीं। जो बेटा तुमसे पैदा हुआ नहीं, तुम किसे धोखा दे रहे हो उसे बेटा कहकर? अपने को समझा लो भला! गोद भर लेने से कुछ भी न होगा, गर्भ पहले भरना पड़ेगा, तभी गोद भरती है; वह दूसरा कदम है। पहला कदम चूक गया तो दूसरा कदम सिर्फ धोखा है। जीवन सभी को भर सकता है, सभी की गोद भर सकता है। जीवन है इसलिए। दो तरह की भूलें संभव हैं : या तो तुम जीवन में सोए-सोए रहो-एक भूल; जिसको हम गृहस्थ की भूल कहें। फिर दूसरी भूल कि कोई जगाने वाला मिल जाए तो तुम जीवन से भाग खड़े होओ; जिसको हम संन्यासी की भूल कहें। ठीक-ठीक, सम्यक राह क्या है? सम्यक राह है, जहां हो वहीं रहो, जागकर रहो। अब तक जो अनुभव तुम्हारे चारों तरफ गुजरे, तुमने नींद में गुजर जाने दिए; उनसे तुम जो ले सकते थे सार, नहीं ले पाए। ___ अगर तुमने सार लिया होता, क्रोध करुणा बन गई होती; क्योंकि क्रोध में करुणा छिपी है। क्रोध करुणा का ही बीज है। अगर तुमने जीवन का अनुभव लिया होता तो काम प्रेम बन गया होता; प्रेम प्रार्थना बन गई होती। काम प्रेम का बीज है। प्रार्थना छिपी है प्रेम में। काम में छिपा है प्रेम; प्रार्थना छिपी प्रेम में; परमात्मा छिपा प्रार्थना में। अगर तुम एक-एक सीढ़ी चढ़े होते...। तो कुछ तो लोग हैं, जो कामवासना में डूबे हैं अंधों की तरह। और फिर कुछ लोग हैं, जो किसी जागने वाले की आवाज सुनकर घबड़ा उठते हैं, भयभीत हो जाते हैं कि हम क्या कर रहे हैं? पाप! पाप!! पश्चात्ताप से भर जाते हैं। भाग खड़े होते हैं। उनका काम का बीज कभी ब्रह्मचर्य नहीं बन पाता। भागकर कहां जाओगे? भागोगे किससे? रोग भीतर है। यह तो ऐसे ही है, जैसे तुम्हें बुखार चढ़ा है और तुम भाग चले जंगल की तरफ। भागोगे कहां? बुखार तुम्हारे भीतर है। सारी बीमारी तुम्हारे भीतर है। जीवन को मौका दो कि तुम्हारे भीतर जो छिपा है, उसे जला डाले। जो कचरा है, जल जाए; जो सोना है, बच जाए। जीवन को मौका दो कि तुम्हें कुंदन बना दे। 116
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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