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________________ जीवन ही मार्ग है करता है जुनूने - शौक मेरा महराबे - तलातुम में सजदे मेरा उन्माद ऐसा है, मेरे उत्साह का उन्माद ऐसा है कि मैं तूफान में प्रार्थनाएं करता हूं। तूफां अकीदा रखता है ... तूफान में यह गुण है कि प्रार्थना का जन्म हो सकता है। तूफां ये अकीदा रखता है, साहिल के परिस्तारों में नहीं किनारों की ओट में जो छिपकर बैठ गए हैं, वहां प्रार्थनाएं पैदा नहीं होतीं। वहां तुम्हारा जीवन उधार हो जाता है, नगद नहीं रह जाता। वहां तुम्हारा जीवन बासा हो जाता है, ताजा नहीं रह जाता। सुबह की ताजगी खो जाती है। फिर ऐसे ही, जैसे कोई किसी को गोद लेकर मां बन जाती है, ऐसे तुम धार्मिक बन जाते हो - किसी और के शब्दों को गोद लेकर । गर्भ की कमी गोद से पूरी न हो सकेगी। गर्भ चूक गए तो गोद भरकर धोखा अपने को देने की कोशिश भला कर लो, यह धोखा महंगा है। तो लोग गीता रखे हैं गोद में— गोद ली हुई गीता। कुरान रखे हैं गोद में - गोद ली हुई कुरान । इस कुरान का अपने गर्भ से कोई जन्म नहीं हुआ। इसे चैतन्य की गहराइयों में गढ़ा नहीं गया। इसके लिए उन्होंने कोई पीड़ा नहीं उठाई। .मोहम्मद से पूछो, कैसी पीड़ा में कुरान का जन्म होता है ! जिस दिन पहली दफा मोहम्मद पर कुरान की पहली आयत उतरी तो कंप गए; जैसे एक तूफान में वृक्ष कंप जाता है। जड़ें हिल गयीं; घबड़ा गए। बूंद में सागर उतरे तो घबड़ाहट तो होगी ही । इतने घबड़ा गए कि बुखार चढ़ आया। घर आने की हिम्मत न पड़ी। समझे कि पागल हो गया हूं। मुझको और परमात्मा की ऐसी कृपा उतर सकती है? मुझ ना- कुछ को इतना बड़ा प्रसाद मिले ? हो नहीं सकता। जरूर मैं पागल हो गया हूं। यह मैंने अपनी ही बात सुन ली है। यह मेरे मन का ही खयाल है। यह मैंने कल्पना कर ली है। रोए, चीखे, चिल्लाए पहाड़ पर; फिर चुपचाप रात के अंधेरे में घर आकर बिस्तर में छिप गए। MIT पत्नी ने पूछा, तुम्हें हुआ क्या है ? हाथ पर हाथ रखा तो आग की तरह जल रहे थे। हुआ क्या है? सुबह भले- चंगे गए थे। उन्होंने कहा, तू अभी मत पूछ । अभी मुझे ही पक्का नहीं है कि क्या हुआ है ! जरूर कुछ पागलपन हुआ है। मैं या तो पागल हो गया हूं, या किसी भ्रम में खो गया हूं। लेकिन तू तो अपनी है, तुझसे मैं कहे देता हूं क्या हुआ है। इस इस तरह की वाणी मुझमें आकाश से उतरी है। किसी और को कहना मत; बदनामी होगी । - पत्नी ने निश्चित मोहम्मद को प्रेम किया होगा । वह उनके चरणों में झुक गई; उसने कहा, तुम घबड़ाओ मत। यह बुखार नहीं है, तुम किसी बड़ी लपट के करीब आ गए हो। तुम्हारे चारों तरफ मैं एक आभामंडल देखती हूं, जो मैंने कभी नहीं देखा 115
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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