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एस धम्मो सनंतनो बांझ होकर खो गयीं! न उन्होंने गीत गाए, न वे नाचे, न उन्होंने कुछ निर्माण किया, न उन्होंने बगीचे लगाए, न उनकी अंगुलियों ने वीणा बजाई; वे सिर्फ भाग गए, जिंदगी से सिकुड़ गए। जैसे शुतुर्मुर्ग छिपा लेता है अपने को रेत में सिर को डालकर, ऐसे जिंदगी से डरकर, कंपकर गुफाओं में छिप गए। ___ इन छिपे आदमियों की पूजा बहुत हो चुकी। इस पूजा से सुबह का सूर्योदय न
आया। इस पूजा से रात और गहरी अंधेरी होती गई, अमावस बनती गई। इतनी प्रतिभा ऐसे ही बांझ चली गई। इतने उर्वर खेत ऐसे ही रेगिस्तान पड़े रह गए। मरूद्यान बन सकते थे जहां, वहां केवल मरुस्थल बना।
नहीं, बुद्ध पुरुषों ने यह कहा ही नहीं। और अगर तुम्हें बुद्ध पुरुषों के जीवन में सृजन न दिखाई पड़े, तो उसका केवल इतना ही अर्थ होता है कि बुद्ध पुरुषों का सृजन बड़ा सूक्ष्म है। कोई गीत बनाता है, कोई मूर्ति बनाता है, बुद्ध पुरुष स्वयं को बनाते हैं। तुमने किसी और को जन्म दिया होगा, बुद्ध पुरुष स्वयं को जन्म देते हैं।
दूसरे को जन्म देने की पीड़ा तुम्हें पता है, तुम्हें अभी उस पीड़ा का कहां पता है जो स्वयं को जन्म देने में होती है? दूसरे की मां बनना हो तो नौ महीने में चुकतारा हो जाता है, स्वयं की मां बनना हो तो जन्म-जन्म लग जाते हैं। जन्म-जन्मों तक गर्भ को ढोना पड़ता है।
बुद्ध पुरुषों ने स्वयं को जन्माया। इसलिए हमने उन्हें द्विज कहा है : दुबारा जो जन्मे। मां-बाप ने जो जन्म दिया था, उस पर ही जो राजी न हुए; जिन्होंने अपने को फिर जन्माया; जो खुद के मां-बाप बने। इससे कठिन और कोई प्रक्रिया नहीं है-स्वयं को जन्म देना।
लेकिन दिखाई न पड़ेगा, क्योंकि उनका काव्य बड़ा सूक्ष्म है। गीत उन्होंने गाए, पर बड़े निःशब्द हैं। मुखरित वे हुए, लेकिन उनके वक्तव्य को, उनकी अभिव्यक्ति को जानने के लिए तुम्हें बड़ी पात्रता चाहिए पड़ेगी। मूर्तियां उन्होंने भी गढ़ी हैं, लेकिन वे मूर्तियां चैतन्य की हैं; चिन्मय हैं, मृण्मय नहीं हैं, मिट्टी की नहीं हैं, पत्थर की नहीं हैं, पाषाण की नहीं हैं। __ लेकिन उनकी बातों को गलत समझकर न मालूम कितने लोग भागे। बुद्ध को कितने लोगों ने अपने पलायन का आधार बना लिया। कितने लोग चुपचाप जीवन से सरक गए।
'जिसने मार्ग पूरा कर लिया है।'
किसने मार्ग पूरा कर लिया है? उसने ही, जिसने जीवन को उसकी सारी झंझावातों में जीया है।
करता है जुनने-शौक मेरा महराब-तलातुम में सजदे
तूफां ये अकीदा रखता है, साहिल के परिस्तारों में नहीं मैं प्रार्थना करता हूं तूफानों में!
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