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जीवन ही मार्ग है
जैसे वृक्ष बीज में दबा रह गया। जैसे आवाज कंठ में अटकी रह गई। जैसे प्रेम हृदय में बंद रह गया। जैसे सुगंध खिलने को थी, खिल न पाई । कली खिली ही न, सुगंध बिखरी ही न ।
एक ही दुख है संसार में - एक ही मात्र – और वह दुख है कि तुम जो होने को हो, वह न हो पाओ। जो तुम्हारी नियति थी, वह पूरी न हो। कहीं तुम चूक जाओ और तुम्हारी वीणा पर स्वर न गूंजे।
हिम्मत रखनी होगी। आंधियों की अंगुलियां आएं, तो उन्हें भी छेड़ने देना अपनी बीन को ।
'जिसने मार्ग पूरा कर लिया है।'
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भगोड़ा कभी मार्ग पूरा नहीं करता । भगोड़ा तो पूरा होने के पहले भाग खड़ा होता है। भगोड़ा तो मार्ग की लंबाई से ही डर गया है; वह मुफ्त मंजिल चाहता है। पकना तो चाहता है, लेकिन पकने की पीड़ा नहीं झेलना चाहता। उस स्त्री जैसा है, जो मां तो बनना चाहती है, लेकिन गर्भ की पीड़ा नहीं झेलना चाहती।
नौ महीने ढोना होगा उस पीड़ा को । और अगर मां बनना है, अगर मां बनने की उस अपूर्व अनुभूति को पाना है— कि मुझ से भी जीवन का जन्म हुआ; अकारथ नहीं हूं, बांझ नहीं हूं; मुझ से भी जीवन की गंगा बही; मैं भी गंगोत्री बनी - अगर उस अपूर्व अनुभव को, उस अपूर्व धन्यभाग को लाना है, तो नौ महीने की पीड़ा झेलनी पड़ेगी। प्रसव की पीड़ा झेलनी पड़ेगी। आंख से आंसू बहेंगे, चीत्कार निकलेगा । लेकिन उन्हीं चीत्कारों और आंसुओं के पीछे मां का अपूर्व रूप प्रगट होता है ।
स्त्री सिर्फ स्त्री है, जब तक मां न बन जाए। स्त्री तब तक सिर्फ साधारण स्त्री है, जब तक मां न बन जाए। मां बनते ही वीणा को छेड़ दिया गया। मां बने बिना कोई भी स्त्री ठीक अर्थों में सुंदर नहीं हो पाती। स्रष्टा बने बिना सौंदर्य कहां ? किसी को जन्म दिए बिना अहोभाग्य कहां ?
तुमने भी देखा होगा, छोटी सी चीज भी तुम बना लेते हो तो खुशी तुम्हें घेर लेती है। एक मूर्ति बना लेते हो, एक चित्र बना लेते हो, एक गीत बना लेते हो, मग्न हो-हो जाते हो। कुछ भीतर नाचने लगता है। तुम व्यर्थ नहीं हो, तुम भी सार्थक हो तुमसे भी कुछ हुआ । परमात्मा ने तुमसे भी कोई काम लिया। तुम भी उसके हाथ बने । तुम्हारे कदमों से वह भी दो कदम चला। तुम्हारी सांसों से उसने भी एक गीत गुनगुनाया ।
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जब तक ऐसा न हो जाए, तब तक जीवन रिक्त, खाली मालूम होगा। भगोड़ों का जीवन खाली होता है ।
इस देश में एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य घटित हुआ है। और वह दुर्भाग्य है कि इस देश में संन्यास भगोड़ों का हो गया। उसके कारण संन्यासी बांझ हो गए। तुम जरा सोचो, पांच हजार साल के लंबे इतिहास में कितनी करोड़ - करोड़ प्रतिभाएं ऐसी ही
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