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________________ जीवन ही मार्ग है का हाथ है। उसमें फूल ही सहयोगी न थे, काटे भी सहयोगी थे। जिन्होंने सहारा दिया था, वे भी; और जो राह पर अड़ंगे बन गए थे, वे भी । जिसने लौटकर देखा है, उसने पाया, आश्चर्य ! कहीं कुछ विरोधी न था । विरोध से ही आदमी विकसित होता है; इसलिए विरोध कुछ भी नहीं है । द्वंद्व से ही आदमी विकसित होता है । द्वंद्व में ही निर्द्वद्व पलता है । द्वैत में ही अद्वैत की आभा उतरती है। 'जिसने मार्ग पूरा कर लिया।' कौन है वह व्यक्ति, जिसने मार्ग पूरा कर लिया ? वही, जिसने जीवन की धूप में अपने को पका लिया; जीवन की गहराइयों और ऊंचाइयों को छुआ; बुरे-भले अनुभव किए; पाप-पुण्य को चखा; गिरने की पीड़ा भी जानी, उठने का अहोभाग्य भी जाना; अंधेरी रातें भी, सूरज की रोशनी से दमकते दिन भी; जिसने सब देखा, जो सबका साक्षी बना । जिसने सब देखा, जिसने सब को अपने ऊपर से गुजर जाने दिया, लेकिन किसी के भी साथ तादात्म्य न बांधा । जवानी आई तो जवान न हुआ; सुख आया तो अपने को सुखी न समझा; दुख आया तो अपने को दुखी न समझा। जागरण ! जागा रहा। होश का दीया जलता रहा। जो आया, उसे स्वीकार किया : जरूर कोई पाठ छिपा होगा। जीवन में कुछ भी आकस्मिक, अकारण घटता नहीं। जीवन में जो भी घटता है, सकारण है । कहीं कोई वजह होगी। अगर आदमी को बार-बार मिटाकर बनाया जाता है तो कारण यही है कि जब तक आदमी बन नहीं पाता, तब तक बार-बार मिटाना पड़ता है। जैसे मूर्तिकार मूर्ति गढ़ता है तो छैनी चलाता चला जाता है, जब तक कि मूर्ति पूरी नहीं हो जाती। पीड़ा होती होगी पत्थर को । छैनी दुश्मन मालूम होती होगी। भाग जाने का मन होता होगा। छैनी को त्याग देने का मन होता होगा। लेकिन तब पत्थर अनगढ़ा रह जाएगा। तब वह भव्य प्रतिमा आविर्भूत न होगी, जो मंदिरों में . विराजमान हो जाए; जो हजार-हजार सिरों को झुकाने में समर्थ हो जाए। जीवन की धूप में पकना ही मार्ग का पूरा होना है। जैसे फल पक जाता है तो गिर जाता है, ऐसे जीवन के मार्ग को जिसने पूरा कर लिया, वह जीवन से मुक्त हो जाता है। फल जब पक जाता है तो जिस वृक्ष से पकता है, उसी से छूट जाता है। इस चमत्कार को रोज देखते हो, पहचानते नहीं । फल पक जाता है तो जिस वृक्ष ने पकाया, उसी से मुक्त हो जाता है; पकते ही मुक्त हो जाता है। कच्चे में ही बंधन है। कच्चे को बंधन की जरूरत है। कच्चे को बंधन का सहारा है | कच्चा बिना बंधन के नहीं हो सकता । बंधन दुश्मन नहीं, तुम्हारे कच्चे होने के सहारे हैं। जब तुम पक जाओगे, जब तुम अपने में पूरे हो जाओगे, वृक्ष की कोई जरूरत नहीं रह जाती, फल छूट जाता है। 111
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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