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________________ प्यासे को पानी की पहचान से लिया गया निर्णय है। धर्म कोई दूसरे को दे नहीं सकता। धर्म लिया जा सकता है, दिया नहीं जा सकता। मुझे फिर से दोहराने दें: धर्म लिया जा सकता है। तुम चाहो तो ले सकते हो, लेकिन कोई तुम्हें दे नहीं सकता।। लेकिन धर्म दिया जा रहा है। मां-बाप दे रहे हैं, स्कूल दे रहा है। सारी दुनिया में चिंता रहती है मां-बाप को कि बच्चों को धर्म की शिक्षा दी जाए। धर्म की शिक्षा का क्या मतलब होता है उनका ? हिंदू को हिंदू बनाया जाए, मुसलमान को मुसलमान बनाया जाए, कहीं गड़बड़ न हो जाए। और मैं जानता हूं कि अगर बच्चों को इक्कीस वर्ष तक हिंदू-मुसलमान न बनाया जाए, तो जिसको मां-बाप गड़बड़ कहते हैं, वह हो जाएगी। मैं उसे गड़बड़ नहीं कहता; वह बड़ी स्वतंत्रता होगी। बड़ी अदभुत दुनिया का जन्म हो जाएगा। क्योंकि मैं मानता हूं, धर्म एक ऐसी अंतर्निहित जरूरत है कि उन्हें खुद ही खोजना पड़ेगा-खोजना ही पड़ेगा। ये झूठे धर्म, जो सिखाने से पैदा हो जाते हैं, इनकी वजह से वे खुद खोज पर नहीं निकलते। अगर प्रत्येक बच्चे को खुला छोड़ दिया जाए, कोई धर्म का शिक्षण न हो-धर्म का शिक्षण होना ही नहीं चाहिए-इक्कीस वर्ष की उम्र तक अगर धर्म की जबर्दस्ती न की जाए, तो इक्कीस वर्ष के बाद प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में खोज शुरू हो जाएगी; हो ही जाती है। धर्म वैसे ही पैदा होता है एक दिन, जैसे कामवासना पैदा होती है। कामवासना चौदह साल की उम्र में पैदा होती है। ऐसे ही इक्कीस साल की उम्र में धर्म का आविर्भाव होता है। वह स्वाभाविक है। आज नहीं कल चेतना पूछेगी ही कि सत्य क्या है? आज नहीं कल आदमी जानना ही चाहेगा, मैं खड़ा कहां हूं? कहां से आया हूं? कौन हूं? आज नहीं कल आदमी पूछेगा ही कि मृत्यु के पार क्या है? कुछ बचता है या सब खो जाता है? सब मिट्टी हो जाता है? _ और अगर मन मुक्त हो तो जीवित गुरु को पहचानने में कोई अड़चन न आएगी। खोजना ही पड़ेगा; खोज तुम्हें किसी न किसी गुरु के पास ले ही आएगी। अभी पुराने गुरु से अटके होने की वजह से नए के पास नहीं आ पाते। अब तुमसे मैं बड़ी उलझन की बात कहता हूं: पुराने से अटके होने के कारण नए के पास नहीं आ पाते। पुराने को तो पहचान ही नहीं पाते, क्योंकि उस पहचान में भी स्वतंत्र खोज नहीं है, नए के पास भी नहीं आ पाते। अगर तुम नए के पास आ जाओ और स्वच्छ मन से, पक्षपात रहित होकर नए को पहचान लो, तो मैं तुमसे और एक बात कहता हूं कि उसी में तुम पुराने को भी पहचान लोगे। और यह पहचान बड़ा अनूठी होगी; यह संस्कार की नहीं होगी, यह अनुभव की होगी। __ अगर तुमने मुझे चाहा है, अगर सच में तुम मेरे करीब आए हो, तो मेरे करीब आने में क्या तुम बुद्ध के करीब नहीं आ गए? अगर सच में तुमने मुझे चाहा है, तो 103
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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