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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारी नहीं-लक्स टायलेट साबुन! महावीर भगवान हैं? तुम कहते हो, निश्चित। यह निश्चित भी तुम्हारा नहीं-लक्स टायलेट साबुन! ___ पुनरुक्तियां हैं, जो बहुत बार दोहराई गई हैं। इतनी बार दोहराई गई हैं कि तुम भूल ही गए हो। लौटो वापस, गौर से देखो। यह सिर्फ संस्कार है। और इस संस्कार के कारण तुम पुराने को तो पहचान ही नहीं पाते, इस संस्कार के कारण तुम नए को भी नहीं पहचान पाते। अब यह थोड़ा समझने जैसा है। यह पुराना तुम्हें पुराने को तो पहचानने नहीं देता, क्योंकि पहचानने की तो सुविधा तभी थी जब तुम्हारा मन संस्कार-मुक्त होकर खोज करता। __ तुमने कभी खोज की कि महावीर भगवान थे या नहीं? तुमने कभी खोज की, बुद्ध शास्ता थे या मही? तुमने कभी निष्पक्ष भाव से, निर्धारणापूर्ण होकर, बिना कोई पहले से पक्षपात बनाए कोई अनुसंधान किया? ___ नहीं; पुराने को तो तुम पहचान ही न पाए। अब पुराने को भगवान मान लिया है तो नए को मानने में अड़चन होती है। क्योंकि पुरानी आस्था पीड़ित अनुभव करती है। ऐसा लगता है, जैसे किसी से धोखा किया। जैसे किसी से विवाह कर लिया और फिर किसी के प्रेम में पड़ गए तो भीतर ग्लानि होती है, पीड़ा होती है, दंश होता है कि यह क्या हुआ? विवाह तो महावीर से हुआ था, बुद्ध से हुआ था, सात फेरे तो उनके साथ लग गए थे, अब किसी और को भगवान मान लें? किसी और को गुरु मान लें? भीतर ग्लानि होती है, पीड़ा होती है, परेशानी होती है। अंतस-चेतना में दुख मालूम होता है। लगता है, धोखा कर रहे हैं, दगा कर रहे हैं। इसी तरकीब से तुम पुराने से उलझे रहते हो, नए को खोजने से बच जाते हो। पुराने को खोज लो, हर्जा नहीं। क्योंकि पुराना भी इतना ही सत्यतर है, इतना ही पूर्णतर है, जितना नया। सत्य के जगत में कुछ पुराना और नया थोड़े ही होता है! वहां कोई समय थोड़े ही है! वहां तो सब ताजा है, सदा ताजा है। वहां तो सभी सद्यस्नात, अभी-अभी नहाया हुआ है। वहां कभी धूल जमती ही नहीं। लेकिन पुराने को तो पहचान नहीं पाते। पहचानने की सुविधा ही नहीं दी जाती। इसके पहले कि बच्चा सोचे-विचारे, हम उसके दिमाग में कूड़ा-करकट डाल देते हैं। हम अपनी धारणा उसके मन में भर देते हैं। कहीं ऐसा न हो कि वह सोच-विचार करे और हमारी धारणा को ठीक न पाए। मां-बाप बड़े डरे हुए हैं; उनको खुद ही शक है अपनी धारणा पर। बच्चे के मन में भर देते हैं, इसके पहले कि वह सोच सके, विचार सके। और यही वह अपने बच्चों के साथ करेगा। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचार चलता है। प्रचार धर्म नहीं है, धर्म तो क्रांति है। धर्म तो प्रत्येक व्यक्ति का अपनी स्वेच्छा 102
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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