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________________ प्यासे को पानी की पहचान नया हो जाता है। पुराना फिर पुराना कहां रह जाता है? __अगर बुद्ध को तुम जान लो तो बुद्ध समसामयिक हो गए; पच्चीस सौ साल पहले हुए ऐसा नहीं, अभी हो गए, तुम्हारे साथ खड़े हो गए। अगर तुम जीसस को पहचान लो और जान लो तो समय का फासला मिट जाता है। कोई दूरी नहीं रह जाती, हमराही हो जाते हो। पुराने को भी कहां पहचान पाते हो? अगर पुराने को ही पहचान लेते, अगर पुराने तक को पहचान लेते, तो नए को पहचानने में दिक्कत ही कहां होती? परंपरा से सिर्फ आभास पैदा होता है। जानते लगते हो माना, जानते नहीं। जैन घर में पैदा हुए हो, महावीर को जानते लगते हो; बचपन से सुनी बातें, सुनी कथाएं। हिंदू घर में पैदा हुए, कृष्ण को जानते लगते हो। मुसलमान घर में पैदा हुए तो मोहम्मद को जानते लगते हो। सुनते-सुनते, पुनरुक्ति से, बार-बार दोहराने से मन पर छाप पड़ जाती है। बार-बार दोहराने से ऐसा अहसास होने लगता है कि पहचान हो गई। पुनरुक्ति से कहीं सत्य का कोई संबंध है! यह तो प्रचार हुआ, प्रोपेगेंडा हुआ। यह तो ऐसा ही हुआ जैसा कि बाजार में चल रहा है। अखबार खोलो: लक्स टायलेट साबुन। फ़िल्म देखने जाओः लक्स टायलेट साबुन। रास्ते पर तख्ने लगे हैं जगह-जगह ः लक्स टायलेट साबुन। पुनरुक्ति की जा रही है। अब तो बिजली के अक्षर बने हैं और वैज्ञानिकों ने व्यवस्था कर दी है कि वे झिलमिलाते रहें, बुझते-जलते रहें। क्योंकि अगर बिना बुझे हुए बिजली के अक्षर लगे रहें तो एक ही बार तुम पढ़ोगे; पुनरुक्ति बार-बार न होगी। निकले-अगर तुम्हें पांच मिनट लगे निकलने में और दस दफा अक्षर बुझे और जले तो तुम्हें दस दफा पढ़ना पड़ेगा-लक्स टायलेट साबुन, लक्स टायलेट साबुन...दस दफा दोहराना पड़ेगा। करोगे क्या? वह बिजली आगे जल रही है, बुझ रही है। वह पुनरुक्ति मन में लकीर खींच जाती है। . फिर तुम दुकान पर गए, दुकानदार पूछता है, कौन सा साबुन ? तुम कहते हो, लक्स टायलेट साबुन। तुम सोचते हो, तुम कह रहे हो, तो गलती में हो। वे जो करोड़ों रुपए कंपनियां खर्च कर रही हैं विज्ञापन के ऊपर, पागल नहीं हैं। तुम नहीं कह रहे हो, कंपनियों के विज्ञापन तुमसे बोल रहे हैं-लक्स टायलेट साबुन ! तुम यही सोचते हो कि तुमने चुना। तुम यही सोचते हो कि स्वतंत्र रूप से तुमने विचारा। तुम यही सोचते हो कि अनुभव से तुमने जाना कि लक्स टायलेट साबुन सबसे अच्छी साबुन है। तुमने कुछ नहीं जाना। तुम्हारे मन को भर दिया गया। ____ तुमसे जब कोई पूछता है, तुम हिंदू हो? तुम कहते हो, हां। यह हां भी तुमसे नहीं आ रही-लक्स टायलेट साबुन! तुमसे कोई पूछता है, ईश्वर को मानते हो? तुम कहते हो, हा; बड़ी अकड़ से कहते हो कि मैं आस्तिक हूं। यह आस्तिकता भी 101
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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