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एस धम्मो सनंतनो
कठिन है कहना; समझना भी कठिन है; लेकिन होता है। __ बुद्धि को समझना कितना ही कठिन हो, उससे इतना ही सिद्ध होता है कि बुद्धि की समझ बहुत दूर नहीं जाती। बुद्धि की कोटियों के बाहर पड़ता है, लेकिन होता है। जो सोचते बैठे रहेंगे कि ऐसा हो सकता है कि नहीं, वे बैठे ही रह जाएंगे। ___ हिम्मत जुटाओ; ऐसा होता है, मैं तुमसे कहता हूं। और तुम भी ज्यादा दूर नहीं हो उस घड़ी से; जरा हाथ बढ़ाने की बात है। तर्क कहीं तुम्हें पंगु न बना दे। कहीं तर्क तुम्हारा पक्षाघात, पैरालिसिस न हो जाए। कहीं ऐसा न हो कि तर्क ही तर्क में खो जाओ, नृत्य से वंचित रह जाओ।
देख चुके तर्क का तांडव बहुत; अब थोड़े अतर्क, श्रद्धा का, निर्विचार का नृत्य भी देखो। उसको देखते ही सब नाच फीके हो जाते हैं। और उसे देख लेने के बाद . तुम्हें सब जगह उसका नृत्य दिखाई पड़ने लगता है।
हर दर्पण तेरा दर्पण है हर चितवन तेरी चितवन है मैं किसी नयन का नीर बनूं तुझको ही अर्ध्य चढ़ाता हूं हर क्रीड़ा तेरी क्रीड़ा है हर पीड़ा तेरी पीड़ा है मैं कोई खेलूं खेल दांव तेरे ही साथ लगाता हूं हर वाणी तेरी वाणी है हर वीणा तेरी वीणा है मैं कोई छेडूं तान तुझे ही बस आवाज लगाता हूं
तीसरा प्रश्नः
पुराने शास्ता को हम परंपरा से जानते हैं, जो कि बहुत आसान है; जीवित शास्ता को पहचानने के लिए काफी विकसित प्रज्ञा चाहिए। जाने कैसे हम तो भटकते हुए आपके पास आ पहुंचे हैं। और पास रहकर भी आपको कहां जान पाते हैं?
| ने शास्ता को भी तुम कहां जान पाते हो? जानते लगते हो, आभास होता
है जानने का; जान कहां पाते हो? अगर जान लो तो पुराना तत्क्षण
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