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प्यासे को पानी की पहचान
और इसलिए भीतर एक नृत्य की धुन बज रही है, भीतर कोई नाच चल रहा है । मन जब ठहरता है, तभी नाच जगता है। जब मन ठहरता है, तभी अपरिचित, अभिनव गीत पैदा होते हैं। जब मन ठहरता है तो झरोखे खुलते हैं, और नई हवाएं, ताजी हवाएं अस्तित्व की, प्राणों में लहरें लेने लगती हैं।
इधर तुम मरते नहीं कि उधर जीवन उतरने लगता है। तुम्हारी मृत्यु परम जीवन का प्रारंभ है। तुम्हारा सूली पर होना एक तरफ, और दूसरी तरफ तुम सिंहासन पर विराजमान हो जाते हो। सूली और सिंहासन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
हुए होश गुम तेरे आने से पहले
हम खो गए तुमको पाने से पहले हुए होश गुम तेरे आने से पहले
हो ही जाएंगे। मन ही खो जाएगा, होश किसे रह जाएगा ? मन ही टूट जाएगा, अहंकार कहां बचेगा? अहंकार तो मन का ही जोड़ है, मन का ही भ्रम है। यह खयाल कि मैं हूं, यह भी एक विचार है । जब सभी विचार ठहर जाएंगे, यह विचार भी ठहर जाएगा। मैं हूं, ऐसा भी पता न चलेगा।
हुए होश गुम तेरे आने से पहले
खो तुमको पाने से पहले
सदा ऐसा ही हुआ है। परमात्मा से मनुष्य का कभी मिलन नहीं होता । मनुष्य होता है, तब तक परमात्मा नहीं होता । परमात्मा होता है तो मनुष्य नहीं होता । मिलन कभी नहीं होता। परमात्मा से मिलना अपनी महामृत्यु से मिलना है। लेकिन महामृत्यु से ही मिलना महाजीवन का द्वार है।
कोई ऐसी भी है सूरत तेरे सदके साकी रख लूं मैं दिल में उठाकर तेरे मैखाने को
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कोई ऐसा भी ढंग है— साकी से पूछता है – कोई ऐसा भी ढंग है... कोई ऐसी भी है सूरत तेरे सदके साकी
रख लूं मैं दिल में उठाकर तेरे मैखाने को
कि तेरी पूरी मधुशाला को उठाकर दिल में रख लूं ? फिर पीना न पड़े।
हां, ऐसी भी सूरत है। उसी सूरत को सिखाने के लिए यह पाठशाला है । क्या चुल्लू- चुल्लू पीना! क्या कुल्हड़-कुल्हड़ पीना ! पूरी मधुशाला को ही उठाने का रास्ता है कि हृदय में ही रख लो।
परमात्मा भीतर आ जाए तो जीवन का मधुमास आ जाता है; सारी मधुशाला भीतर आ जाती है। तब एक नाच का जन्म होता है— नाच, जिसमें गति नहीं; नाच, जहां सब ठहरा हुआ है और फिर भी नृत्य चल रहा है। एक गीत, जहां ध्वनि नहीं है, परिपूर्ण शून्य मौन है, फिर भी स्वर बज रहा है। अनाहत नाद उसको ही कहा है। नाद - ब्रह्म उसको ही कहा है। ध्वनि खो जाती है, फिर भी नाद रह जाता है। बड़ा
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