________________
प्यासे को पानी की पहचान
यहां पर्वत-पर्वत हीरे हैं यहां सागर-सागर मोती हैं तुम कितना ही लूटो-झपटो, यहां कोई परमात्मा कम थोड़े ही पड़ जाता है!
यहां पर्वत-पर्वत हीरे हैं यहां सागर-सागर मोती हैं यहां परमात्मा ने तुम्हें सब तरफ से घेरा ही हुआ है।
मैं तुम्हें वही दे रहा हूं, जिसे तुम पाए ही हुए हो। और मैं तुमसे वही छीन लेना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास है ही नहीं। यह बेबूझ लगेगा, लेकिन कोई और उपाय नहीं है इसे कहने का। ___ फिर मैं दोहरा देता हूं : मैं तुमसे वही छीनना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास नहीं है; और तुम्हें वही देना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास सदा से है।
दूसरा प्रश्नः
भीतर कुछ स्थगित हो गया है और पूरे शरीर में पूरे समय नृत्य चलता है; कृपा करके कुछ कहें।
शुभ है, मंगल है।
ठहरना ही सब कुछ है। अवाक होकर भीतर कुछ रुक जाए, भीतर की गति बंद हो जाए, तो संसार की गति बंद हो जाती है। यहां भीतर कुछ रुका कि बाहर समय रुक जाता है। यहां भीतर कुछ रुका कि चांद-तारे रुक जाते हैं। यहां भीतर कुछ रुका कि सब रुक जाता है। क्षण शाश्वत हो जाता है।
और जहां विचार रुकते हैं, वहीं पहली दफा अर्थ का आविर्भाव होता है। जहां मन ठहरता है, रुकता है, न हो जाता है, वहीं पहली बार जीवन का सुराग मिलता है।
हकीकत में पूछो तो मुद्दआ वही था.
जबां रुक गई थी जहां कहते-कहते जो कहना चाहते हो, उसे तो कहते-कहते जबान रुक जाएगी। जो कहना चाहते हो, वह जबान न कह सकेगी। जो सोचना चाहते हो, वह सोचने में न आएगा; सोचना रुक जाएगा। और यह मंजिल कुछ ऐसी नहीं कि तुम चलोगे तो पहुंचोगे, यह मंजिल कुछ ऐसी है कि तुम रुकोगे तो पहुंच जाते हो।
संसार में दौड़ो। दौड़ना ही पड़ेगा, मंजिल बाहर है; मंजिल दूर है-कहीं वहां, जहां आकाश क्षितिज को छूता है, सदा वहां है। कितना ही दौड़ो, पहुंच नहीं पाते।
यह कभी तुमने समझने की कोशिश की कि संसार में दौड़ो कितना ही, पहुंचते नहीं। और परमात्मा को पाने के लिए दौड़ने की जरूरत ही नहीं है; क्योंकि वह ऐसा घर है, जो तुमने कभी छोड़ा नहीं। आंखें कितने ही दूर चली गई हों, चांद-तारों में