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________________ एस धम्मो सनंतनो अपने मन में डूबकर पा जा सुरागे-जिंदगी तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन लेकिन अगर तुम अपने बन जाओ तो मेरे बन ही गए। तुम अगर अपने बन गए तो परमात्मा के बन ही गए। तुम अपने ही नहीं हो, यही अड़चन है। और तीसरी बात कि 'क्या आप परमात्मा को मुझ तक लाने में समर्थ हैं?' जैसे कोई यह मेरी परेशानी हो! जैसे कोई चुनौती दी जा रही है! तुम अगर पात्र नहीं हो तो कोई भी समर्थ नहीं है; और तुम अगर पात्र हो तो किसी माध्यम की जरूरत नहीं है। तुम्हारी पात्रता ही परमात्मा को ले आती है। तुम जिस क्षण पात्र हो जाते हो, उसी क्षण वर्षा हो जाती है; क्षणभर की देरी नहीं है। कहावत है : देर है, अंधेर नहीं। मैं तुमसे कहता हूं, देर भी नहीं है। अंधेर तो है ही नहीं, देर भी नहीं है। कहावत कुछ गलत है। न देर है, न अंधेर है। जिस क्षण तुम तैयार हो, उसी क्षण मिल जाता है। और जब तक न मिले, इतना ही जानना कि तुम तैयार नहीं हो; शिकायत मत करना। 'क्या आप परमात्मा को मुझ तक लाने में समर्थ हैं?' मेरा लेना-देना क्या? तुम हो, तुम्हारा परमात्मा है, तुम्हारी खोज है। अगर मेरे कारण तुम्हें थोड़ा सहारा मिल जाए तो बस, काफी है। उसके लिए तुम्हें अनुगृहीत होना चाहिए। इधर तुम मुझे चुनौती दे रहे हो कि जैसे यह भी काम मेरा है। जैसे कि अगर परमात्मा तुम तक न आया तो कसूर मेरा होगा। जैसे पकड़ा मैं जाऊंगा कि तुम तक परमात्मा क्यों न आया? तुमने गुलाम होने के कितने रास्ते खोजे हैं! तुम गुलामी छोड़ते ही नहीं। कभी धन की गुलामी, कभी पद की गुलामी, अगर वहां से तुम बचते हो तो गुरु की गुलामी। गुलामी का मतलब यह होता है, कोई और करे; तुम किसी और पर निर्भर हो। तुम भिखमंगे रहने की जिद क्यों किए बैठे हो? परमात्मा ने चाहा है कि तुम सम्राट होओ। मैं तुम्हें कुछ इशारे दे सकता हूं, खोज तो तुम्हें ही करनी होगी। __ इसका यह अर्थ नहीं कि मैं परमात्मा को तुम तक लाने में समर्थ नहीं हूं; अगर मैं अपने तक ले आया तो तुम तक लाने में क्या अड़चन है? कोई अड़चन नहीं है सिवाय तुम्हारे। मैं सदा ही तुम्हारे सामने परमात्मा की भेंट लिए खड़ा हूं। जरा द्वार-दरवाजे खोलो, जरा देखो तो सही क्या मैं तुम्हारे लिए ले आया हूं? मैं तुम्हारे सामने लिए खड़ा हूं और तुम पूछते हो कि क्या आप समर्थ हैं? बड़ी मजे की बात रही। तुम्हारे पास दृष्टि ही नहीं है; लोभ है, दृष्टि नहीं है। पाना चाहते हो, लेकिन पाना चाहने की कोई तैयारी नहीं है। और परमात्मा को लाना थोड़े ही पड़ता है, आया ही हुआ है। कब लूट-झपट से हस्ती की दुकानें खाली होती हैं 96
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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