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________________ प्यासे को पानी की पहचान और कोई समझ नहीं है । मैं सदगुरु हूं या नहीं, सरोवर हूं या नहीं — और कोई उपाय नहीं, प्यास को जगाकर आओ। प्यास लेकर आओ। पीकर देखो ! समझने की, सूत्र की बात इतनी ही है कि नजर अपनी तरफ, ध्यान अपनी तरफ। यह पर की तरफ नजर ही सांसारिक दृष्टि है। अपनी तरफ नजर, तो तुम बहुत सीख सकोगे- - मुझसे ही नहीं और बहुतों से भी सीख सकोगे। और अगर तुम शिष्य बनने को तैयार हुए तो यह सारा संसार तुम्हें सदगुरुओं से भरा हुआ दिखाई पड़ेगा। वृक्ष और चट्टानें और झरने सभी सदगुरु हो जाएंगे। - सूफी फकीर हुआ, हसन । जब वह मरने लगा, किसी ने उससे पूछा, तुम्हारा गुरु कौन था ? उसने कहा, फेहरिस्त बड़ी लंबी है, सांसें बहुत कम बची हैं। अगर मैं अपने सारे गुरुओं की बात करूं तो मुझे उतनी ही बड़ी जिंदगी चाहिए पड़ेगी, जितनी बड़ी जिंदगी मैं जीया। क्योंकि क्षण-क्षण उनसे मुलाकात हुई, जगह-जगह वे मिले । फिर भी उस आदमी ने जिद की कि तुम पहले सदगुरु का बता दो सिर्फ, जिससे तुम्हें पहली झलक मिली। उसने कहा, मैं एक गांव से गुजरता था । और तब मैं बड़ा अकड़ा हुआ था, क्योंकि मैंने फलसफा पढ़ा था, दर्शनशास्त्र पढ़ा था, शास्त्र कंठस्थ लिए थे, तर्क सीख लिए थे; बड़ी अकड़ थी। एक छोटे से बच्चे को मैंने मस्जिद की तरफ जाते देखा; एक हाथ में दीया लिए हुए था। मैंने उससे पूछा कि सुन, दीया तूने ही जलाया? उसने कहा, मैंने ही जलाया। तो मैंने उससे पूछा, तू मुझे यह बता - एक दार्शनिक प्रश्न पूछा - कि जब तूने ही दीया जलाया तो तुझे पता होगा कि ज्योति कहां से आई? कहीं से तो आई होगी। और जब तूने ही जलाया तो जरूर देखी होगी; ज्योति आई कहां से? उस बच्चे ने कहा, ठहरो । उसने एक फूंक मारकर या बुझा दिया और उसने कहा, ज्योति गई। तुम बता सकते हो, कहां गई ? तुम्हारे सामने ही गई है। T हसन ने कहा, मेरी अकड़ टूट गई। झुककर मैंने उसके पैर छू लिए। एक छोटे बच्चे ने मेरा सारा दर्शनशास्त्र कूड़ा-करकट में डाल दिया; आंख खोल दी । एक छोटे बच्चे को भी मैं सिखाने की चेष्टा कर रहा था, कुछ जो मुझे ही पता नहीं था । मेरे गुरु होने की चेष्टा उसने तोड़ दी और गुरु हो गया। और तुम पूछते हो बुद्धों के पास जाकर, महावीरों के पास जाकर, क्राइस्टों के पास जाकर - आप सदगुरु हैं ? तुम्हारे अंधेपन की कोई सीमा नहीं । जिनके पास आंख है, उन्हें छोटे बच्चों में भी सदगुरु मिल गए हैं। राह चलती घटनाएं शास्त्र हो गई हैं। दुर्घटनाओं से सूत्र मिल गए हैं मुक्ति के। भटकन का सार-निचोड़ मार्ग बन गया है। भूल-चूक से इत्र निचोड़ लिया है। भूल-चूक की ईंटों को रखकर भवन बना लिया है मुक्ति का । असली सवाल तुम्हारे सीखने का है 1 95
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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