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एस धम्मो सनंतनो
अंधेरी पर्तों में उतर सकता है, और चाहे तो प्रकाश के अनंत जगत को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य की महिमा यही है कि मनुष्य स्वतंत्र है। उसकी स्वतंत्रता अबाध है। मनुष्य स्वतंत्रता है, यही उसकी खूबी है, यही उसका गौरव है; यही उसकी अड़चन भी, कठिनाई भी। यही उसकी दुविधा भी है। __तुमने तो चाहा होता कि भटकने की सुविधा न होती और तुम रेल की पटरियों की भांति होते कि डिब्बे उन पर दौड़ते चले जाते, कहीं और जाने की जरूरत न होती। मगर तब सत्य अगर गुलामी हो, जबरदस्ती हो तो कुरूप हो गया। और सत्य और कुरूप हो जाए-सत्य ही न रहा। सत्य के सौंदर्य में यह समाविष्ट है कि वह स्वतंत्र होगा। ___ इसलिए तो परमात्मा प्रगट नहीं है। उसका प्रगट होना बड़ी परतंत्रता हो जाएगी। उसका अप्रगट होना स्वतंत्रता है।
तुम थोड़ा सोचो, परमात्मा जगह-जगह बीच में आकर खड़ा हो जाए-तुम सिगरेट पीने जा रहे थे, वे बीच में खड़े हो गए! तुम शराब ढालने ही के करीब थे कि वे सामने खड़े हो गए! तुम किसी की जेब काट ही रहे थे कि वे आ गए-जीना मुश्किल हो जाएगा, कठिन हो जाएगा।
नहीं, तुम्हें तुम पर ही छोड़ा हुआ है। तुम्हें अपनी ही भूलों से सीखना है। तुम्हें भटक-भटककर राह खोजनी है। और जो राह बिना भटके मिल जाए, बड़ी मूल्यवान नहीं। जो बहुत भटककर मिलती है, उसी में मूल्य है। जिसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है, उसी में मूल्य है।। ___ तो मैं तुमसे कहूंगा, खोजो मुझे; मैं यहां मौजूद हूं। तुम्हारे द्वार पर खड़ा हूं, लेकिन दस्तक न दूंगा; तुम्हें द्वार खोलने पड़ेंगे। मैं भीतर आने को राजी हूं, लेकिन बिना तुम्हारे निमंत्रण के न आऊंगा। जब तक न पाऊंगा कि तुम्हारा हृदय स्वागतम बन गया, तब तक भीतर आने का कोई कारण नहीं है। ___ यही पूछो कि क्या तुम सदशिष्य हो? यही पूछो कि क्या तुम्हारी आंख खुली है? क्या तुम सीखने को तैयार हो?
क्योंकि सदगुरु को पहचानना हो तो शिष्यत्व पाना होगा; और तो कोई उपाय नहीं। सरोवर की और क्या पहचान है? –कि तुम प्यासे होओ। तुम एक सरोवर के किनारे खड़े हो, प्यासे नहीं हो, और तुम उस पानी से पूछते हो, क्या तुझमें प्यास को बझाने की क्षमता है? सरोवर क्या कहेगा? प्यास ही न हो तो सरोवर के पास क्या उपाय है सिद्ध करने का कि प्यास को बुझाने की क्षमता है। ___प्यास होनी चाहिए। तो तुम पूछोगे थोड़े ही, प्यास ही तुम्हें सरोवर में ले जाएगी। तुम पूछोगे थोड़े ही, प्यासा थोड़े ही पूछता है कि पानी बुझाएगा प्यास को? प्यासा तड़फता है पानी के लिए। प्यासा बिना पूछे पी जाता है; पीकर जानता है कि प्यास बुझती है। और वहीं उसी अनुभव से समझ आती है। अनुभव के अतिरिक्त
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