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प्यासे को पानी की पहचान
यही मैं तुमसे भी कहता हूं : ज्ञानी मत बनना। आश्चर्यचकित होने की क्षमता मत खो देना; वही सबसे बड़ी धरोहर है। जानकार होकर मत बैठ जाना कि मैं जानता हूं। पंडित के मन में धूल जम जाती है। उसे फिर कोई चीज आश्चर्यचकित नहीं करती। वह सभी चीज को जानता हुआ मालूम होता है।
अपने ज्ञान को थोड़ा हटाओ। यह विचारों की धूल जरा अलग करो। फिर थोड़े आश्चर्यचकित होकर देखो: एक-एक पत्ती में उसी की हरियाली है, एक-एक पक्षी के गीत में उसी के स्वर हैं।
मगर तुम्हारा जानना, तुम्हारा ज्ञान, तुम्हारे प्राण लिए ले रहा है। कोयल गाती है, तुम कहते हो, कोयल गा रही है। मैं तुमसे कहता हूं, फिर से सुनो; कोयल के बहाने उसी ने गाया है। फूल खिलता है, तुम कहते हो, फूल खिल रहा है। मैं तुमसे कहता हूं, फिर से देखो; फूल के बहाने वही खिला है। ये सब बहाने हैं उसके। तुमने अगर समझा कि फूल खिल रहा है, चूक गए। तुमने अगर समझा कि कोयल गा रही है, चूक गए।
जरा आंख खाली करो, खिड़कियों के जरा बाहर आओ; हिंदू-मुसलमान होने को जरा पीछे छोड़ो; गीता-कुरान को जरा हटाओ; जरा खुली आंख से देखो-जैसे, छोटे बच्चे ने पहली दफा देखा हो। फिर से तुम पहली दफा इस संसार को देखो, तुम उसे पाओगे; जगह-जगह से झांकता हुआ पाओगे।
परिधि दृष्टि का दोष अहं का कुंठित दर्शन परिचय भ्रम की देह अपरिचय सहज चिरंतन
परिचय भ्रम की देह जहां-जहां तुम सोचते हो, जान लिया, परिचय हो गया, वहीं भ्रम खड़ा हो गया।
जीवन की थोड़ी घटनाओं को समझो। तुम एक स्त्री को विवाह कर लाए थे तीस साल पहले, सात चक्कर लगाए थे, भांवर डाल ली थीं, बैंड-बाजे बजे थे, घोड़े पर सवार होकर घर आ गए थे; तब से तुमने इस स्त्री को फिर से गौर से देखा? तुमने मान लिया मेरी पत्नी है, बात समाप्त हो गई। फिर से गौर से देखने की जरूरत न रही। सात चक्कर लगा लिए थे, बैंड-बाजे बजा लिए थे, एक परिचय बना लिया। पुरोहितों ने मंत्रोच्चार कर दिए थे। अपरिचित एक स्त्री थी, तुम भी अपरिचित थे, दोनों के बीच इस क्रिया-कांड से परिचय का एक नाता बना लिया। क्या सच में ही तुम अपनी पत्नी से परिचित हए हो? __ बच्चा घर में पैदा होता है, नाम रख लेते हो, पंडित को बुलाकर कुंडली बनवा लेते हो; क्या सच में ही तुम अपने बच्चे को जानते हो-कौन है ? कौन आया है? कौन अवतरित हुआ है? यह कौन फिर आया? किसने देह धरी? यह कौन इस बच्चे