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प्यासे को पानी की पहचान
को जानने चले तो व्यर्थ की माथापच्ची होती है। मेरा उसमें कोई रस नहीं है। ___तुम परमात्मा को छोड़ो। तुम्हारे सिद्ध करने से वह सिद्ध न होगा; तुम्हारे
असिद्ध करने से असिद्ध न होगा। वह है ही। तुम जानो न जानो, कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका हाथ तुम्हारे भीतर पहुंचा ही हुआ है। वहीं तुम जरा टटोलो; वहीं तुम्हें उसका हाथ पकड़ में आ जाएगा। ___ और जो अपने निकटतम स्वयं के भीतर उसे न पकड़ पाए, वह उसे कहीं भी न पकड़ पाएगा। फिर तो सभी स्थान बड़ी दूरी पर हो जाते हैं। अपने हृदय की धड़कन में उसकी आवाज न सुनाई पड़ी तो तुम्हें फिर उसकी आवाज कहीं भी सुनाई न पड़ेगी।
'क्या आपने धर्म को परी तरह पा लिया है?'
उसे कभी किसी ने खोया ही नहीं। जो खो जाए, वह भी धर्म हुआ? धर्म का अर्थ ही होता है, जो न खो सके; जो तुम्हारा चिरंतन स्वभाव है; जो तुम हो; जो तुम्हारा शुद्ध होना है। इसे कभी किसी ने खोया नहीं। तुम चाहकर भी इसे खोना चाहो तो न खो सकोगे। ज्यादा से ज्यादा तुम विस्मरण कर सकते हो। वह भी बड़ी चेष्टा से करना पड़ता है, वह भी बड़ी मुश्किल से करना पड़ता है। हजार उपाय, विधियां, व्यवस्थाएं जुटानी पड़ती हैं तब कहीं तुम उसे भूल पाते हो। हजार तरह की शराबें पीनी पड़ती हैं तब तुम उसे भूल पाते हो।
तो पहली तो बात यह खयाल में रखो कि धर्म वही है, जो है। है का नाम ही धर्म है। अस्तित्व के स्वभाव का नाम धर्म है। __ जब मैं धर्म की बात कह रहा हूं तो हिंदू धर्म, मुसलमान धर्म, ईसाई धर्म, इन सब रोगों की बात नहीं कर रहा हूं। ये तो बीमारियां हैं, जिनसे आदमी को स्वस्थ होना है। मैं उस धर्म की बात कर रहा हूं, जिसको महावीर ने कहा है : बत्थु सहाओ धम्म: वस्तु का स्वभाव धर्म है।
आग जलाती है, यह आग का धर्म है। .. पानी नीचे की तरफ बहता है, यह पानी का धर्म है।
हवा अदृश्य है, यह हवा का धर्म है। तुम चैतन्य हो, यह तुम्हारा धर्म है। अपने धर्म को ठीक से पकड़ लो, वहीं से द्वार खुलेगा विराट का।
और ध्यान रखना, जो भी तुम जान लोगे, उससे धर्म चुक न जाएगा। जो भी तुम जान लोगे, उसे तुम ऐसा ही समझना, जैसे किसी ने खिड़की से आकाश की तरफ झांका हो। खिड़की का चौखटा आकाश का स्वभाव नहीं है। खिड़की की आकृति आकाश से बिलकुल असंबंधित है। आकाश से कुछ खिड़की का लेना-देना नहीं है। तुम्हारी खिड़की गोल हो, चौकोन हो, किसी रूप-रंग की हो, छोटी हो, बड़ी हो, सीखचों वाली हो, खुली हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आकाश का