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एस धम्मो सनंतनो
धड़कता है। वही तुममें जागता है, इसलिए तुममें होश है। वही तुम्हारा जन्म है, वही तुम्हारा जीवन है। उसने तुम्हें पूरी तरह पाया ही हुआ है।
जरा पीछे लौटकर तो देखो! जरा अपने को तो पहचानो! अपनी पहचान में ही तुम पाओगे, उसके साथ पहचान हो गई। अपने को खोजते-खोजते ही आदमी उसे खोज लेता है। इसलिए जो परमात्मा की खोज में सीधे जाते हैं, वे गलत जाते हैं। जो अपनी खोज में जाते हैं, वही ठीक जाते हैं।
जब भी मेरे पास कोई आता है, वह कहता है, परमात्मा को पाना है, तब मैं समझता हूं गलत आदमी आ गया। यह बात ही लोभ की है। यह बात ही मूढ़तापूर्ण है। यह बात ही अहंकार की है। इस आदमी के पास दिमाग बाजार का है।
जब मेरे पास कोई आता है और कहता है, मुझे स्वयं से थोड़ी अपनी पहचान बनानी है। जिसकी अपने से पहचान नहीं, परमात्मा से पहचान कैसे होगी? जिसकी अपने से पहचान है, उसे परमात्मा को जानने की जरूरत ही क्या रही? जिसने अपने को पहचान लिया, उसने उसके सूत्र को पकड़ लिया। वह तुम्हारे भीतर मौजूद है।
ऐसा कभी हुआ ही नहीं है कि वह मौजूद न रहा हो; इसलिए तो हम उसे शाश्वत कहते हैं। ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां वह मौजूद न हो; इसलिए तो हम उसे सर्वव्यापी कहते हैं। तुम इतने विशिष्ट नहीं हो सकते कि तुम्हें छोड़कर सब जगह मौजूद हो। तुम अपने को अपवाद मत मानो।
मैंने एक कहानी सुनी है। एक शेखचिल्ली को किसी ने कह दिया कि तेरी पत्नी विधवा हो गई। भरे बाजार में वह छाती पीटकर रोने लगा। भीड़ इकट्ठी हो गई, लोग हंसने लगे। किसी ने पूछा, मामला क्या है? उसने कहा, मेरी पत्नी विधवा हो गई। उन्होंने कहा, पागल! तू जिंदा बैठा है तो तेरी पत्नी विधवा हो कैसे सकती है? उसने कहा, इससे क्या होता है? मेरे जिंदा रहने से क्या होता है? मैं जिंदा बैठा था, मेरी मां तक विधवा हो गई थी। मैं जिंदा बैठा था, मेरी फूई विधवा हो गई। मैं जिंदा बैठा था, मेरी मामी विधवा हो गई। मुहल्ले में कितनी औरतें विधवा हो गयीं, पूरे गांव में कितनी औरतें विधवा हो गयीं, मैं जिंदा बैठा था। इससे क्या फर्क पड़ता है? वह फिर छाती पीटकर रोने लगा।
तुम परमात्मा को खोज रहे हो, वह खोज ऐसी ही है, जैसे कोई आदमी मान लेता हो कि उसकी पत्नी विधवा हो गई है और वह जिंदा बैठा है। परमात्मा को खोया कब है? तुम हो तो परमात्मा है ही। तुम्हारे होने में ही समाया। तुम्हारे रहते तुम्हारी पत्नी विधवा नहीं हो सकती। तुम्हारे रहते यह असंभव है कि परमात्मा न हो। तुम काफी प्रमाण हो। तुम उसकी मौजूदगी हो। तुम उसके हस्ताक्षर हो। __लेकिन असली सवाल है अपने को जानने का। असली सवाल परमात्मा को जानने का नहीं है। परमात्मा की बातचीत जैसे ही तुमने उठाई कि तुम शब्द-जाल, शास्त्र-जाल में पड़े। अपने को जानने चले तो साधना का जन्म होता है। परमात्मा