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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारे लिए सहयोगी हो सकते हैं। क्योंकि ऋषि तो तुमसे बहुत दूर है। कवि तुम्हारे और ऋषि के बीच में खड़ा है। तुम जैसा बेहोश, लेकिन तुम जैसा स्वप्नरहित नहीं! ऋषियों जैसा होशपूर्ण नहीं, लेकिन ऋषियों ने जो खुली आंख देखा है, उसे वह बंद आंख के सपने में देख लेता है। कवि कड़ी है। ये मसाइले-तसव्वुफ ये तेरा बयान गालिब तुझे हम वली समझते जो न बादाख्वार होता इसलिए कभी-कभी ऋषियों को समझने के लिए कवियों की सीढ़ियों पर चढ़ जाना उपयोगी है। लेकिन वहां रुकना मत। वह ठहरने की जगह नहीं है। गुजर जाना, चढ़ जाना, उपयोग कर लेना। _ 'दुर्बुद्धि मूढ़ जन अपना शत्रु होकर जीता है। पाप कर्म करते हुए विचरण करता है, जिसका फल कडुवा होता है।' पाप पहले भी कडुवा है, मध्य में भी कडुवा है, अंत में भी कडुवा है। पुण्य पहले भी मीठा है, मध्य में भी मीठा है, अंत में भी मीठा है। तुम अगर सच में ही भोगना चाहो जोवन के अर्थ को, जीवन के रस को, तो पुण्य ही उपाय है। पुण्य ही कुंजी है स्वर्ग के द्वार की। पाप है कुंजी नर्क के द्वार की। अगर तुम्हारे जीवन में तुम नर्क पाओ तो मत देना भाग्य को दोष। मत कहना कि समाज दोषी है। मत कहना कि दुनिया के हालात ऐसे हैं; कि दूसरे लोग सता रहे हैं। ये सब बातें कहोगे तो तुम कभी स्वर्ग की कुंजी अपने हाथ में न पा सकोगे। तुम्हारा विश्लेषण गलत हो गया। इतना ही कहना कि मैं कहीं जीवन के नियम से दूर हट रहा हूं। जो तेरी बज्म से निकला सो परीशां निकला तो खोज करना कि कहां-कहां तुम जीवन के नियम से दूर जा रहे हो। अगर क्रोध के कारण तुम्हारे जीवन में कष्ट हो तो क्रोध के प्रति जागना, ताकि क्रोध की ऊर्जा करुणा बन जाए। अगर लोभ के कारण कष्ट हो तो लोभ के प्रति जागना, ताकि लोभ में नियोजित ऊर्जा दान बन जाए। अगर घृणा के कारण कष्ट हो तो घृणा के प्रति जागना, ताकि घृणा में संलग्न ऊर्जा मुक्त हो जाए और प्रेम बन जाए। जिनको हमने पाप कहा है, वे और कुछ भी नहीं हैं, वे जीवन से दूर ले जाने के रास्ते हैं। जिनको पुण्य कहा है, वे भी कुछ नहीं हैं, वे वापस अपने घर को खोज लेने के उपाय हैं। जब भी तुम्हारे मुंह में कडुवा स्वाद आए, कड़वाहट फैले, तब समझना कि जीवन में कुछ करने का समय आ गया। कुछ बदलना पड़ेगा। और इसमें देर मत करना। क्योंकि देर में एक खतरा है। धीरे-धीरे कडुवाहट कम मालूम होने लगेगी। अगर तुम झूठ रोज-रोज बोलते ही गए तो पहले दिन जितना कडुवा होता है, दूसरे दिन उतना कडुवा नहीं होता है। तीसरे दिन और भी कडुवा नहीं होता। धीरे-धीरे तुम 68
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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