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________________ सत्संग-सौरभ फूल की सुगंध भी तेरी महफिल से बाहर निकलती है तो परेशान हो जाती है । नाला-ए-दिल, दिल की आह भी तेरी महफिल से बाहर निकलती है तो परेशान हो जाती है । दूदे - चिरागे - महफिल, और की तो बात छोड़ो, तेरी महफिल के चिराग का धुआं भी बाहर निकलता है तो डगमगाता और परेशान नजर आता है। बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूदे - चिरागे-महफिल जो तेरी बज्म से निकला सो परीशां निकला लेकिन यही सत्य है धर्म की व्यवस्था का । वहां से जो दूर हुआ, वहां से जो बाहर निकला, वह परेशान हुआ। जो उस नियम को छोड़ते हैं, वे पीड़ित होते हैं । कोई पीड़ा उन्हें देता नहीं, अपने ही छोड़ने के कारण पीड़ित होते हैं । तुम्हारे जीवन में अगर पीड़ा हो तो किसी के ऊपर दोष मत देना और शिकायत मत करना। इतना ही जानना कि कहीं न कहीं जीवन के नियम से तुम दूर जा रहे हो । परमात्मा की महफिल से दूर जा रहे हो । लौटना ! पीड़ा सांकेतिक है, और पीड़ा मित्र है, सहयोगी है। क्योंकि बताती है कि दूर जा रहे हो। पीड़ा को थर्मामीटर समझना । वह खबर देती है कि हट रहे हो दूर; पास आ जाओ। जब भी दुख हो तो अपने जीवन की फिर-फिर परीक्षा करना । जब भी दुख हो, अपने जीवन का फिर-फिर निदान करना; फिर-फिर विश्लेषण करना । जरूर कहीं तुम्हारे पैर कहीं गलत पड़े हैं। तुम मंदिर से दूर गए हो। कवि भी कभी-कभी बड़ी मधुर बातें कह देते हैं। होश में नहीं कहते बहुत । होश में कहें तो ऋषि हो जाएं। बेहोशी में कहते हैं। लेकिन कवि कभी-कभी बेहोशी में भी झलकें पा लेते हैं, उस परम सत्य की । कवि और ऋषि का यही फर्क है। ऋषि होश में कहते हैं, कवि बेहोश में कहते हैं। ऋषि वहां पहुंचकर कहते हैं, कवियों को वहां की झलक दूर से सपनों में मिलती है । कवि स्वप्न-द्रष्टा है, ऋषि सत्य-द्रष्टा है। ये मसाइले-तसव्वुफ ये तेरा बयान गालिब तुझे हम वली समझते जो न बादाख्वार होता ये मसाइले-तसव्वुफ... ईश्वरीय प्रेम की ये अदभुत बातें, कि वेद ईर्ष्या करें। ये मसाइले-तसव्वुफ.... सूफियाना बातें ! ये मस्ती की बातें ! ये तेरा बयान गालिब और तेरा कहने का यह अनूठा ढंग, कि उपनिषद शरमा जाएं। तुझे हम वली समझते जो न बादाख्वार होता अगर शराब न पीता होता तो लोग तुझे सिद्ध पुरुष समझते। वह तेरी भूल हो गई। ये बातें तो ठीक थीं, ये बातें बड़ी कीमती थीं, जरा शराब की बू थी, बस ! कवि जब होश में आता है तो ऋषि हो जाता है। लेकिन कवियों के वक्तव्य 67
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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