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________________ एस धम्मो सनंतनो चरंति बाला दुम्मेधा, अमित्तेनेव अत्तना। वे जो दुर्बुद्धि मूढ़ जन हैं, जो सदगुरु के पास आकर भी ऐसे गुजर जाते हैं, जैसे कुछ भी न हुआ। जो ज्ञानियों के पास आकर भी ज्ञान की झलक से वंचित रह जाते हैं, जिन्होंने अपने को इतना कठोर कर लिया है कि करीब-करीब मुर्दा हो गए हैं, ऐसे दुर्बुद्धि मूढ़ जन अपने शत्रु स्वयं हैं। कोई और उन्हें कष्ट नहीं दे रहा है। अपनी ही नासमझी अपने गले की फांसी हो गई है। ___ 'अपने ही शत्रु होकर पापकर्म करते हुए विचरण करते हैं, जिसका फल कडुवा होता है।' बुद्ध ने बार-बार कहा है, कि पाप करना सिर्फ नासमझी नहीं, आत्मघात है। भूल नहीं, विध्वंस है। तुम जब भी पाप करते हो, तो दूसरे गुरुओं ने तो तुमसे कहा है कि पाप बुरा है, क्योंकि दूसरे को चोट पहुंचानी बुरी है। बुद्ध ने कहा है, पाप बुरा है, क्योंकि पाप में तुम अपने ही गले पर फांसी लगा रहे हो। यह दूसरे से कोई संबंध नहीं है। दूसरे को चोट पहुंचेगी, न पहुंचेगी, यह तो गौण बात है, लेकिन पाप करके तुम अपने को ही आग में डाल रहे हो। अपने को ही चिता पर चढ़ा रहे हो। ___ 'दुर्बुद्धि मूढ़ जन अपना शत्रु आप है।' बुद्ध ने कहा है, तुम अपने ही मित्र हो अगर संवेदनशील, समझपूर्वक जीयो। अपने ही शत्रु हो, अगर दुर्बुद्धि से, मूढ़ता से, कठोर होकर जीयो। अगर बेहोशी में जीयो तो तुमसे बड़ा शत्रु तुम्हारा कोई दूसरा नहीं। अगर होश में जीयो तो तुमसे बड़ा तुम्हारा कोई मित्र नहीं। जो व्यक्ति भी पाप करता है, पाप करने के कारण कोई उसे दंड देता है, ऐसा नहीं; पाप करने के कारण वह जीवन के सनातन नियम से दूर पड़ता जाता है। वह दूरी ही कष्ट ले आती है। जितना सनातन नियम से दूर पड़ता है, जितना दूर जाता है, उतनी ही ठंडक खोती चली जाती है। जीवन उष्ण होता चला जाता है। आग की लपटें पकड़ने लगती हैं। जो भी सनातन नियम से दूर हटेगा, वह अपने हाथ अपने रास्ते पर कांटे बो रहा है। कोई दूसरा दंड नहीं देता। कोई दूसरा नियंता नहीं है। ___ वह जो जीवन का परम नियम है, जिसको बुद्ध धर्म कहते हैं, उसके पास होने में सुख है, दूर होने में दुख है। उसके साथ एक हो जाने में महासुख है। उसके साथ बहुत दूर पड़ जाने में महादुख है। नर्क यानी परम नियम से फासला, स्वर्ग यानी निकटता। बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूदे-चिरागे-महफिल जो तेरी बज्म से निकला सो परीशां निकला . प्रेयसी के लिए कहा है कवि ने, कि तेरी महफिल से जो भी निकलता है, तुझसे दूर होने के कारण परेशान हो जाता है। आदमियों की तो बात छोड़ो, बू-ए-गुल,
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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