SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्संग-सौरभ अभ्यासी हो जाते हो। कडुवाहट मिट जाती है। यह भी संभव है कि तुम्हें मिठास भी आने लगे। तब तुम्हारा दुर्भाग्य सुनिश्चित हो गया। उस पर सील लग गई। अब उसे खोलना मुश्किल हो जाएगा। तो जब भी जीवन में तुम्हें पहली कडुवाहट आए, किसी भी कृत्य को करते हुए, तत्क्षण समझना कि पाप हो रहा है। कडुवाहट सूचक है। कडुवाहट का कांटा प्रतिपल तुम्हें बता रहा है कि कहां क्या हो रहा है। जब भी जीवन में कोई मिठास आए, समझना कि कोई पुण्य हुआ। पुण्य को दोहराना, ताकि पुण्य तुम्हारी आदत हो जाए। पाप को मत दोहराना, ताकि पाप कहीं तुम्हारी आदत न हो जाए। तो धीरे-धीरे तुम पाओगे कि तुमने अपने भीतर ही उस कल्याण-मित्र को खोज लिया, जो तुम्हें परम आनंद की तरफ ले जाएगा। अन्यथा तुम अपने ही शत्रु के हाथों में हो। आज इतना ही। 69
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy