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________________ एस धम्मो सनंतनो जिसे तुम जिंदगी कहते हो, वह अभी मरुस्थल जैसी है। जिसे तुम जिंदगी कहते हो, वह अभी एक वीराना है। जिसे तुम अभी जिंदगी कहते हो, उसमें तुमने पतझड़ ही जाने हैं, वसंत नहीं। दोपहर की जलती लपटें जानी हैं, सुबह की शीतल हवा नहीं। जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए जैसे सहराओं में हौले से चले बादे-नसीम जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए जैसे कोई आदमी बीमार पड़ा है, और कोई कारण नहीं है, अचानक उठकर बैठ जाए। अचानक स्वास्थ्य की एक लहर आ जाए-बेवजह करार आ जाए। __सत्पुरुष के सत्संग में जो घटता है, बेवजह है। उसका कोई कारण नहीं है। क्योंकि तुम बिलकुल तैयार न थे। तुमने कभी सपने में भी न सोचा था कि तुम्हारे इस मरुस्थल में अचानक, चुपचाप, शीतल हवाओं का आगमन हो जाएगा। तुमने कभी यह विचारा भी न था कि तुम्हारे पतझड़ में वसंत बिना आवाज किए, बिना पगध्वनि किए उतर आएगा। तुमने कभी सोचा न था। ___ तुम तो करीब-करीब राजी ही हो गए थे। तुमने तो करीब-करीब मान लिया था कि यही जिंदगी है। बस, यही जिंदगी है। तुमने तो स्वीकार कर लिया था जिंदगी का यह रूखा-सूखापन-फूल रहित! फल रहित! तुमने तो मान ही लिया था, इस घिसटन का नाम ही जिंदगी है। तुमने तो इस व्यर्थ की दौड़-धाप, आपाधापी को ही जिंदगी स्वीकार कर लिया था। लेकिन किसी सदगुरु के पास अचानक तुम्हें याद आती है, जिसे तुमने जिंदगी कहा, वह तो जिंदगी का प्रारंभ भी नहीं। वह तो जिंदगी की भूमिका भी नहीं। वह तो जिंदगी का अ, ब, स भी नहीं। तुमने जिसे जिंदगी समझा, वह तो मौत का ही छिपा हुआ रूप थी। भूल हो गई। भ्रांति में रहे। ____ यह एक क्षण में हो जाता है। जैसे कोई तुम्हें सोए से झकझोर कर जगा दे, आंख खुल जाए; ऐसा ही सत्संग है। लेकिन तुम संवेदनशील हो तो यह हो पाता है। तुम जीभ की तरह संवेदनशील हो तो यह हो पाता है। लोग इतने कठोर क्यों हो गए हैं? कलछियां क्यों हो गए हैं? लोगों को एक और बड़ा भ्रांत खयाल है कि कठोरता में सुरक्षा है। लोग सोचते हैं, अगर कठोर न हुए तो असुरक्षित हो जाएंगे। हर कोई दबा देगा। हर कोई छाती पर बैठ जाएगा। तो लोग कठोर हो गए हैं, ताकि सुरक्षित हो जाएं। हालत बिलकुल उलटी है। तुमने कभी गौर किया? दांत कठोर हैं, धीरे-धीरे गिर जाते हैं। जीभ कठोर नहीं है, कभी गिरती नहीं है। अंत तक साथ बनी रहती है। जीभ इतनी कोमल है और बत्तीस कठोर दांतों के बीच बनी रहती है। दांत आते हैं और चले जाते हैं। जीभ सुरक्षित है। संवेदनशीलता में सुरक्षा है, क्योंकि संवेदनशीलता में जीवन है। घबड़ाना मत
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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