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________________ सत्संग-सौरभ कपड़े-लत्तों की फिक्र करते, न तुम दर्पण के सामने खड़े होकर अपने को सजाते, संवारते। सब शिष्टाचार, सब सभ्यता एक तरफ पड़ी रह जाती है। अगर तुम बाथरूम में नग्न खड़े स्नान कर रहे थे तो नंगे ही भाग खड़े होते हो। भूल ही जाते हो कि नग्न हूं। तीव्रता, अग्नि का बोध काफी है। ___ जब तुम बुद्ध पुरुषों के पास...कभी तुम्हें अवसर मिल जाए, तो त्वरा से जाना चाहिए, तीव्रता से जाना चाहिए, बोध से जाना चाहिए। एक क्षण में घटना घट सकती है। यह कोई सवाल नहीं है कि जिंदगीभर, सैकड़ों साल तक तुम सत्पुरुषों का सत्संग करो, तब तुम्हें बोध आएगा। डर तो यह है कि अगर तुम्हारे भीतर त्वरा नहीं है, तीव्रता नहीं है तो कभी न आएगा। हजारों साल बीत जाएंगे, तुम पर धूल जमती जाएगी। तुम्हारा दर्पण और भी धुंधला होता चला जाएगा। 'विज्ञ पुरुष मुहूर्तभर में...।' जरा सा भी होश हो, समझ हो, जीवन के अनुभव की थोड़ी सी भी प्रतीति हो तो एक क्षण में क्रांति घट जाती है। ...तत्काल धर्म को जान लेता है, उसी प्रकार, जैसे जिह्वा दाल के रस को जान लेती है।' . कल मैं एक गीत पढ़ रहा था। गीतकार ने तो प्रेयसी के लिए लिखा है। गीतकार उससे बड़े प्रेम को जानते भी नहीं। लेकिन शब्द महत्वपूर्ण हैं और परमात्मा के खोजियों के काम में भी आ सकते हैं। . रात यूं दिल में तेरी खोई हुई याद आई जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए जैसे सहराओं में हौले से चले बादे-नसीम जैसे बीमार को बेवजह करार आ जाए __एक क्षण में घटती है बात-तेरी खोई हुई याद आई। सत्पुरुष के पास किसी और की याद तुम्हें नहीं आती, अपनी ही खोई हुई याद आती है। सत्पुरुष के पास, जैसे तुम दर्पण के सामने खड़े हो गए। जैसे तुमने कभी दर्पण न देखा हो, तो तुम्हें अपने चेहरे की कोई खबर न होगी। सत्पुरुष के सामने खड़े होकर जैसे तुम दर्पण के सामने आ गए। अचानक अपना चेहरा पहचाना। कभी न जाना था, तत्क्षण याद आ गई। और याद ऐसी जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए पता भी न चले, पगध्वनि भी न हो। चुपके से वीराने में बहार आ जाए ___जैसे सहराओं में हौले से चले बादे-नसीम जैसे मरुस्थलों में, जहां कोई सुबह की ठंडी हवा चलने का सवाल नहीं है, अचानक...अचानक, अकारण शीतल हवा का झोंका आ जाए।
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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