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________________ एस धम्मो सनंतनो वही, जिसकी मालकियत हो। मस्तिष्क पर तुम्हारी क्या मालकियत है? कोई भी तो मालकियत नहीं। तुम रात सोना चाहते हो, विश्रांति चाहते हो; दिनभर के थके-मांदे, उलझे, परेशान; और मस्तिष्क अपने ताल बजाए जाता है, अपने ताने-बाने बुने जाता है। मस्तिष्क अपनी गुनगुनाहट किए जाता है। तुम्हें नींद आए न आए, मस्तिष्क अपना हिसाब जारी रखता है। तुम सो भी जाओ, मस्तिष्क सपने बुनते रहता है। तुमसे बिलकुल अलग चलता है। तुम्हारा कोई काबू नहीं रह गया। मालकियत होती तो मस्तिष्क जीवित रहता। तब तुम्हारी समग्रता का अंग होता। तुम्हारे साथ चलता, तुम्हारे साथ बैठता, तुम्हारे साथ उठता। अब तो अलग ही हो गया, खंड-खंड हो गया। तुम अलग हो गए, मस्तिष्क अलग हो गया। ध्यान का इतमा ही अर्थ है कि यह मस्तिष्क फिर से तुम्हारे खून की चाल के साथ चले, तुम्हारे हृदय की धड़कन के साथ धड़के। यह तुम्हारी संवेदनाओं, तुम्हारी भावनाओं, तुम्हारे प्रेम, इनके साथ एक रस हो जाए, अलग न रह जाए, अलग-थलग न रह जाए। यह तुम्हारी समस्तता का एक जीवंत अंग-हो। तब तुम मालिक हो जाते हो। शिष्य तो जीभ की भांति है, एक अंग तुम्हारा। कलछी मुर्दा है। मुर्दा कैसे अनुभव करे? बुद्ध ने ठीक ही प्रतीक चुना। ___ 'विज्ञ पुरुष मुहूर्तभर भी पंडित के साथ रहे, तो वह तत्काल धर्म को उसी प्रकार जान लेता है, जिस प्रकार जिह्वा दाल के रस को जान लेती है।' .. __एक मुहूर्त, एक पल भी! क्योंकि अनुभव कुछ समय की बात नहीं है। जिन अनुभवों की यहां हम चर्चा कर रहे हैं, उन अनुभवों का समय से कोई संबंध नहीं है। वे कालातीत हैं। उनके लिए समय नहीं लगता। समझ लगती है, समय नहीं लगता। होश चाहिए, समय का कोई सवाल नहीं है। ऐसा नहीं है कि तुम बुद्ध पुरुषों के पास हजार साल तक रहोगे तो बहुत ज्यादा सीख लोगे। जो सीख सकता है, एक क्षण में सीख लेगा। जो नहीं सीख सकता, वह हजार साल तक वैसे ही चूका चला जाएगा। असली सवाल समय का नहीं है, असली सवाल बोध का है। यह तुमने खयाल किया, कुछ चीजें बोध से समझ आती हैं। घर में आग लग गई, तुम छलांग लगाकर भाग निकलते हो। एक क्षण भी नहीं रुकते। तुम यह नहीं कहते कि भई, समझ तो लेने दो, किसने लगाई ? कैसे लगी? लगी भी है कि सिर्फ माया है, सपना है? और लगी भी हो तो अभी और हजार काम भी तो करने जरूरी हैं। पहले उनको निपटा लूं, फिर निपट लेंगे। नहीं, सब काम रुक जाते हैं। तुम यह भी तो नहीं कहते कि जाऊं, किसी गुरु से पूछ आऊं, कैसे निकलूं। न तुम जाकर शास्त्र को देखते हो कि शास्त्र में शायद कोई विधि दी हो, कि जब घर में आग लगे तो कैसे निकलना चाहिए। न तुम
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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